धार्मिक आडंबरों से दूर सृष्टि माता मंदिर
हिमाचल प्रदेश की देव संस्कृति जितनी संपन्न और आकर्षक है, उतनी ही आडंबरपूर्ण भी है। अनगिनत ऐसे मंदिर हैं जो विविध शैलियों में निर्मित कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। बहुत कम मंदिर हैं जो या तो पुरातत्व विभाग के अंतर्गत हैं या फिर जिला प्रशासन के अधीन, लेकिन वहां के नियम संबंधित देव समितियां ही तय करती हैं। इन सभी के मध्य एक ऐसा मंदिर भी है जिसे न तो प्रदेश सरकार का कोई संरक्षण प्राप्त है और न ही हिमाचल का भाषा विभाग उसे जानता है। समुद्रतल से 1798 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सृष्टि माता मंदिर शिमला से 8 किमी.की दूरी पर स्थित है। भीतर पहुंच कर आपको मां सृष्टि के भव्य मंदिर व 19 फुट ऊंचे देव स्तंभ के दर्शन होंगे। प्रांगण में पीतल के दो भारी भरकम शेर आपको निहारते नजर आएंगे। यहीं पर विशाल शिवलिंग और नंदी के दर्शन भी आप कर सकते हैं। मंदिर के बायीं ओर बान के विशाल पेड़ पर स्थापित मां सृष्टि की मूर्ति आपको आशीर्वाद देती दिखेगी। शेर पर विराजमान यह चतुर्भुज मूर्ति एक लोहे के छोटे से बक्से के भीतर स्थापित है, जिसके ऊपर कलश लगा है। बाहर दाएं-बाएं दो लघु स्तंभ हैं, जिनके सिरों पर चारमुखी शेर की आकृतियां उकेरी गई हैं। मूर्ति के ऊपर सोने और चांदी के छतर टंगे रहते हैं। मंदिर के मध्य में 8 फुट का चौरस स्तंभ है, जो मंदिर से 13 फुट नीचे भूमि में समाया है, जिसे रंगीन शीशे से अलंकृत किया गया है और चारों ओर पीतल की नक्काशीदार पट्टिकाएं सजी हैं। इसके भीतर तीन इंच का सुराख है, जो मंदिर के ऊपर मध्य भाग में स्थापित कलश से जमीन तक है, जिसमें मूशक मिट्टी डली हुई है। इसके चारों ओर परिक्रमा पथ है। सामने मां सरस्वती की प्रतिमा विराजमान है। यहीं से बायीं ओर परिक्रमा करने पर आप मां काली, मां लक्ष्मी और मां दुर्गा की प्रतिमाओं के दर्शन करेंगे। सभी प्रतिमाओं के ऊपर रंगीन शीशों के टुकड़ों से मढि़त सांप की छवियां और पंख दर्शाए गए हैं, जो माया और पृथ्वी के घूमने के प्रतीक हैं। प्रत्येक प्रतिमा के ऊपर छत के जिस बिंदु से घंटियां लटकी हैं, उन्हें ऊर्जावान बनाने के लिए शीशे के सूर्यचक्र निर्मित किए गए हैं। यह चक्र काली की प्रतिमा के ऊपर नहीं है, क्योंकि यह माना जाता है कि वहां शक्ति स्थिर नहीं होती।