गाँधी जी कथनी और करनी के योग के कारण बने महात्मा : पद््म विभूषण




लखनऊ।

लखनऊ स्थित इण्डिया लिटरेसी बोर्ड, साक्षरता निकेतन में बुद्धवार को जाने-माने गाँधीवादी एवं पर्यावरण विचारक पद््म-विभूषण चण्डी प्रसाद भट््ट ने ”वर्तमान परिवेश में गाँधी जी की प्रासंगिकता“ विषयक व्याख्यान-माला का उद््घाटन दीप प्रज्ज्वलित एवं गाँधी जी तथा डॉ0 फिशर के चित्र का मल्यार्पण करके किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ महात्मा गाँधी के प्रिय भजन ”रघुपति राघव राजा राम“ से किया गया।
बता दें कि बोर्ड द्वारा महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती एवं संस्थान की संस्थापिका स्व0 डॉ0 वेल्दी हॉनसिंगर फिशर की 140वीं जयंती के अवसर पर 15 दिवसीय कार्यक्रम 18 सितम्बर से 02 अक्टूबर के बीच साक्षरता निकेतन में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।  
इस अवसर पर श्री भट््ट ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गाँधी जी की प्रेरणा से ज्ञान की ज्योति को विस्तारित करने के लिए श्रीमती फिशर ने साक्षरता निकेतन की स्थापना की थी। वास्तव में शिक्षा के क्षेत्र में यह एक अभिनव प्रयोग एवं चुनौती भरा कार्य था। गाँधी जी ने चरखा के माध्यम से सामाजिक विषमता को दूर करने का प्रयास किया। गाँधी जी का मानना था कि विकेन्द्रित व्यवस्था से गाँव का विकास हो सकता है। उन्होंने कहा कि गाँधी जी कथनी और करनी के योग के कारण महात्मा बनें।
भट््ट ने गाँधी जी के विचारों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गाँधी ने कहा था कि मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता के लिए धरती सक्षम है। प्रत्येक व्यक्ति के विकास के लिए ग्राम विकास का मंत्र दिया। अपनी आवश्यकता को सीमित करके पृ्थ्वी को सबके जीने लायक बनाएँ। महात्मा गाँधी ने सत्य, अहिंसा सतत कर्मशीलता की वकालत करते हुए प्रकृति का दुरुपयोग रोकने की बात कही। शिक्षा के साथ परिवेश और पर्यावरण की समझ होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी के सामने जलवायु परिवर्तन का संकट है, जिसके लिए अभी से सतर्क होने की आवश्यकता है।
भट्ट ने इस अवसर पर एक स्लाइड शो के माध्यम से ”हिमालय की संवेदनशीलता और पर्यावरण एवं विकास के कुछ मौलिक बिन्दु“ पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हिमालय का पूरे देश के साथ अन्तर्सम्बन्ध है, जिसे समझने की जरूरत है। 'ग्लोबल वार्मिंग' का हिमालय पर सीधा असर पड़ रहा है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। समय पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में पानी की समस्या होगी। वैज्ञानिक इस बात को समझें और समाज में जागरूकता पैदा करें। वनीकरण के माध्यम से बंजर भूमि को हरा-भरा बनाया जा सकता है। अंधाधुंध पेड़ों की कटान से बाढ़ का खतरा बढ़ता है, जिससे प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में जान-माल का नुकसान होता है। उन्होंने कहा कि इलाज से बेहतर परहेज है।
भट््ट ने कहा कि पेड़ों की कटान से पर्वतों की मिट््टी पानी के साथ बहती है। ”सिल्ट“ के कारण ”रिवर-बेड“ में बदलाव आता है, जिसके फलस्वरूप बाढ़ की विषम स्थिति पैदा होती है। जंगली नष्ट होंगे तो उसका सीधा असर गृहस्थी पर पड़ेगा। गाँधी जी ने इस बात को दशकों पहले अनुभव किया था। पर्यावरण की सुरक्षा हिमालय से शुरू होनी चाहिए। हिमालय पर आने वाले परिवर्तन से पहाड़ी क्षेत्र के साथ-साथ मैदानी क्षेत्र भी प्रभावित होते हैं। नेपाल, भूटान सहित हिमालय से लगे अन्य पड़ोसी देश पर भी इसके विपरीत प्रभाव पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं, विद्यार्थियों और क्षेत्रीय निवासियों को विश्वास में लेकर पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर इण्डिया लिटरेसी बोर्ड के अध्यक्ष जी0 पटनायक, पूर्व लोकायुक्त न्यायमूर्ति एससी वर्मा, पूर्व महासचिव, राज्यसभा आरसी त्रिपाठी, प्रो0 भूमित्र देव, पूर्व कुलपति, अनीस अंसारी, आई.ए.एस. (से.नि.), अतुल पूर्व डी.जी.पी. एवं उपाध्यक्ष, इण्डिया लिटरेसी बोर्ड, वी.एन. गर्ग, आई.ए.एस. (से.नि.), वेंकेटेश्वर लू, आई.ए.एस., प्रबन्धक निदेशक, इमडप, प्रो0 डॉ0 अकील अहमद, कुलपति इन्टीग्रल यूनिवर्सिटी, ईश्वर चन्द्र द्विवेदी, आई.पी.एस. (से.नि.), बोर्ड के निदेशक लोकेश कुमार सहित विद्यार्थीगण उपस्थित थे।






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