गाय, भैंस, बकरी, ऊंटनी, भेड़, हथिनी के दूध से होने वाले लाभ

भारतीय संस्कृति में खान−पान का बहुत महत्व है और भारतीय भोजन का एक महत्वपूर्ण अंग है दूध। शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो जिसने इसका प्रयोग कभी न किया हो। बढ़ते बच्चों के विकास के लिए दूध की उपयोगिता से कोई अनजान नहीं है इसके अलावा दूध में अनेक ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो विभिन्न रोगों को दूर करने में सहायक होते हैं।


गाय का दूध विटामिन ए, बी, सी, डी और ई का बहुत अच्छा स्रोत होता है। यह जल्दी पचने वाला होता है। यह शरीर का पोषण कर, निर्बलता को दूर करता है। रोगियों के लिए गाय का दूध सबसे अच्छा माना जाता है। गाय का धारोष्ण दूध शहद के साथ सेवन करने से ताकत एवं बुद्धि का विकास होता है। गाय के दूध में 8−10 कागजी नींबू का रस डालकर तुरन्त पीने से बवासीर में लाभ मिलता है। पीलिया के निदान के लिए गाय के दूध में सोंठ मिलाकर उस का सेवन करना चाहिए। दूध में गुड़ डालकर पीने से मूत्रकृच्छ से राहत मिलती है परन्तु यह कफ और पित्त को बढ़ाता है।
दूध को हमेशा एक उबाल आने पर गुनगुना ही पीना चाहिए। दूध को ज्यादा नहीं उबालना चाहिए क्योंकि इससे उसके पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। पीते समय दूध पर आई मलाई निकाल देनी चाहिए क्योंकि यह गरिष्ठ, शीतल, तृप्तिकारक, स्निग्ध, पुष्टिदायक, धातुवर्धक तथा कफकारक होती है। दूध को हमेशा रात को ही पीना चाहिए। रात को पीने से दूध बुद्धिप्रद, क्षयनाशक, अधिक पथ्य तथा अनेक रोगों के लिए लाभप्रद सिद्ध होता है। दूध को सदैव घूंट−घूंट कर ही पीना चाहिए। दूध पीने के एकदम बाद दही या खटाई का सेवन नहीं करना चाहिए।
भैंस के दूध में विटामिन बी, सी, डी तथा ई मिलते हैं। यह बलवर्धक शरीर को पुष्ट करता है। यह श्रमहारक जठराग्नि को दूर करने वाला होता है। यह गाय के दूध की अपेक्षा अधिक भारी तथा चिकना होता है।
बकरी का दूध गाय के दूध की अपेक्षा अधिक आसानी से पच जाता है। विटामिन ए, बी, सी, डी और ई का स्रोत यह दूध हल्का तथा कसैला होता है। अविसार, खांसी, क्षय, बुखार तथा रक्तपित्त को दूर करने में यह सहायक होता है। इसके दूध के सेवन से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
आंखों में दर्द होने पर एकदम साफ रुमाल की पट्टी बनाकर, दूध में भिगोकर, आंख पर रखने से जलन, दर्द और सुर्खी में तुरन्त राहत मिलती है। यह हमारे रक्त में उपस्थित टाकासिन्स और अनिद्रा के रोग को दूर करता है। इस दूध को माथे पर सिर पर और पैरों के तलुओं में लगाकर मलने से नींद अच्छी आती है। गर्भवती महिलाओं को बकरी के दूध का सेवन जरूर करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं में यह दस्त की समस्या का निराकरण करता है। इस दूध में छह माशा सेमर की गोंद मिलाकर पीने से प्रदर रोग ठीक हो जाता है। बकरी के दूध को मथनी से मथने के बाद कुछ गर्म ही पिया जाता है। एक स्वस्थ बकरी के दूध को सबसे अधिक निर्दोष माना जाता हैं बच्चों को भी यह दूध दिया जा सकता है।
भेड़ का दूध गर्म तथा नमकीन होता है। इसके सेवन से पथरी तथा फेफड़ों के घाव में आराम मिलता है। इस दूध में एक तोला बादाम मिलाकर, पीने से पुंसत्व शक्ति बढ़ती है। खून की उल्टी में यह दूध लाभकारी होता है। हालांकि शरीर पर इसका दूध मलने से शरीर की सुंदरता बढ़ जाती है परन्तु अधिक दिनों तक इस दूध का लगातार प्रयोग करते रहने से शरीर में एक विशेष प्रकार की गंध आने लगती है।
हमारे देश के कुछ हिस्सों में ऊंटनी का दूध भी प्रयोग में लाया जाता है। यह दूध वात और कफ के प्रकोप से होने वाले सभी विकारों का शमन करता है। कृमि एवं बवासीर आदि के रोगियों के लिए यह बहुत लाभदायक होता है। घोड़ी तथा एक खुर वाले सभी पशुओं का दूध शरीर को शक्ति देता है। इससे शरीर में स्थिरता भी उत्पन्न होती है। ऐसे पशुओं का दूध कुछ खट्टा और नमकीन भी होता है।
छोटे बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए गधी का दूध सर्वश्रेष्ठ है। यह बच्चों को बल भी देता है और खांसी में भी लाभदायक होता है। सांडनी का दूध जलोदर के उपचार में कारगर सिद्ध होता है।
हथिनी के दूध से शरीर में न केवल शक्ति आती है अपितु इससे शरीर में स्थिरता भी पैदा होती है। परन्तु इसका सेवन करते समय यह ध्यान रखें कि यह बहुत भारी प्रकृति का होता है इसलिए देर से पचता है।
मां के दूध के गुणों से तो हम सभी परिचित हैं। जन्म लेते ही हमारा सबसे पहला भोजन यही होता है। इससे नवजात शिशु को जीवनशक्ति मिलती है और उसके शरीर में स्निग्धता आती है। मां के दूध में अनेक ऐसे तत्व होते हैं जिनसे हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। जिन बच्चों को किसी कारणवश मां का दूध नहीं मिल पाता वे दूसरे बच्चों के तुलना में ज्यादा बीमार पड़ते हैं।
दूध के इतने गुणों को देखते हुए उसे स्वास्थ्य के लिए अमृत कहा जा सकता है।


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