सरकार का राम मंदिर पर बड़ा दांव



अयोध्या में विवादित जमीन छोड़कर बाकी जमीन पर यथास्थिति हटाने को अर्जी






नई दिल्ली -राम जन्मभूमि विवाद मामले में केंद्र सरकार ने बड़ा दांव चला है। सरकार ने अयोध्या विवाद मामले में विवादित जमीन छोड़कर बाकी जमीन को लौटने और इस पर जारी यथास्थिति हटाने की मांग की है। प्रयागराज कुंभ में कैबिनेट की बैठक कर रहे योगी आदित्यनाथ ने केंद्र के इस कदम को सद्भाव के लिए जरूरी करार दिया। हालांकिअयोध्या विवाद में पक्षकार निर्मोही अखाड़े ने सरकार के इस कदम का विरोध किया है। सरकार ने अपनी अर्जी में 67 एकड़ जमीन में से कुछ हिस्सा सौंपने की अर्जी दी है। ये 67 एकड़ जमीन 2.67 एकड़ विवादित जमीन के चारों ओर स्थित है। सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन सहित 67 एकड़ जमीन पर यथास्थिति बनाने को कहा था। सरकार के इस कदम का वीएचपी और हिंदूवादी संगठनों ने स्वागत किया है। 1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या अधिग्रहण ऐक्ट के तहत विवादित स्थल और आसपास की जमीन का अधिग्रहण कर लिया था और पहले से जमीन विवाद को लेकर दाखिल तमाम याचिकाओं को खत्म कर दिया था। सरकार के इस ऐक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।


तब सुप्रीम कोर्ट ने इस्माइल फारुखी जजमेंट में 1994 में तमाम दावेदारी वाले सूट (अर्जी) को बहाल कर दिया था और जमीन केंद्र सरकार के पास ही रखने को कहा था और निर्देश दिया था कि जिसके फेवर में अदालत का फैसला आता है, जमीन उसे दी जाएगी। रामलला विराजमान की ओर से एडवोकेट ऑन रिकार्ड विष्णु जैन ने बताया था कि दोबारा कानून लाने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन उसे सुप्रीम कोर्ट में फिर से चुनौती दी जा सकती है। वीएचपी ने केंद्र के इस कदम का स्वागत किया है। वीएचपी के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने एक बयान जारी कर कहा कि कोर्ट ने इस्माइल केस में कहा था कि अतिरिक्त जमीन इसके मालिकों को लौटाई जा सकती है। वीएचपी को उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट केंद्र द्वारा दाखिल याचिका पर शीघ्र निर्णय करेगा। इस विवाद में मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी का कहना है कि जब अयोध्या अधिग्रहण एक्ट 1993 में लाया गया, तब उस एक्ट को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने तब यह व्यवस्था दी थी कि एक्ट लाकर सूट को खत्म करना गैर संवैधानिक है। पहले अदालत सूट पर फैसला ले और जमीन को केंद्र तब तक कस्टोडियन की तरह अपने पास रखे। कोर्ट का फैसला जिसके भी पक्ष में आए, सरकार उसे जमीन सुपुर्द करे। उधर, अयोध्या विवाद पर केंद्र की ताजा पहल को पूरी तरह संवैधानिक बताते हुए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने सरकार की मंशा स्पष्ट की है। श्री जावड़ेकर ने कहा कि संवैधानिक बैंच ने ही यह कहा था कि सरकार को निर्णय करना है कि जो बाकी जमीन है उसका क्या किया जाए। ऐसे में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से यथास्थिति के आदेश को बदलने का अनुरोध किया है।


याचिका के पीछे केंद्र सरकार का मंदिर 2 प्लान


केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दी गई अर्जी में 1993 में अधिग्रहीत 67 एकड़ जमीन को गैर विवादित बताते हुए इसे इसके मालिकों को लौटाने की अपील की है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में 2.77 एकड़ जमीन को विवादित बताते हुए तीन हिस्सों में बांट दिया था। अब केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में जो अर्जी दी है, उसमें उसने 0.313 एकड़ जमीन को ही विवादित बताते हुए संबंधित पक्षों को वापस सौंपने की अपील की है। इस 67 एकड़ में राम जन्मभूमि न्यास की 42 एकड़ जमीन शामिल है। सरकार के इस कदम को बिना अध्यादेश लाए गैर विवादित जमीन पर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ  करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।



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