जटोली शिव मंदिर


दक्षिण द्रविड़ शैली से बने जटोली शिव मंदिर पर नक्काशी का अद्भुत और बेजोड़ नमूना है। सोलन से करीब सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर में देश विदेश से श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है। यह मंदिर भारत ही नहीं, बल्कि एशिया में सबसे ऊंचा माना जाता है। इसकी ऊंचाई करीब 124 फुट है। स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने यहां तपस्या के दौरान इस बात की भविष्यवाणी की थी कि यहां बनने वाले मंदिर के कारण हिमाचल का नाम देश ही नहीं विश्व में प्रसिद्ध होगा। उस समय अभी मंदिर का निर्माण शुरू भी नहीं हुआ था। उनकी भविष्यवाणी अब सही साबित होने लगी है। करोड़ों रुपए से बने इस मंदिर के निर्माण का खर्च भक्तों के चढ़ावे और दान दी गई धनराशि से ही किया गया है। करीबन 33 साल की कला के बेजोड़ नमूने के इस मंदिर को 24 जनवरी 2013 को सबसे ऊंचे गुंबद को स्थापित करने के बाद मंदिर को दर्शनार्थ के लिए खोल दिया गया। हजारों भक्तों ने अब जटोली मंदिर को ही अपना चार धाम मान लिया है। यहां पहला धाम कुटिया, दूसरा धाम- सुखताल कुंड, तीसरा धाम समाधि और फिर चौथा धाम शिवालय मंदिर को माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि कई लोग अब इन्हीं की यात्रा करके चार धाम स्वीकार करने लगे हैं। स्वामी परमहंस ने अपने तप के बल से जो जल कुंड तैयार किया है, उसमें लोगों की अगाध आस्था है। लोग इसके पानी को चमत्कारी मानते हैं, जो किसी भी तरह की बीमारी को ठीक करने के लिए सक्षम है। भक्तों का मानना है कि ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति मंदिर में सात रविवार नियमित रूप से आता है, उसकी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। कहा जाता है कि जल कुंड के जल के सेवन से कई रोगों से छुटकारा भी मिलता है। पहाड़ों की गोद में बसे स्वामी परमहंस की तपोस्थली और जटोली के इस शिवालय को एशिया में सबसे ऊंचे शिवालय का दर्जा दिया गया है। एशिया के सबसे ऊंचे मंदिर के गर्भगृह में शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय विराजमान हैं। गुफा के ठीक सामने बनाया गया यह सबसे ऊंचा शिवालय इसलिए भी अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यहां दुनिया का सबसे अलग शिवलिंग स्थापित किया गया है। गुजरात से लाए गए इस शिवलिंग की कीमत ही 18 लाख रुपए है। यह शिवलिंग स्फटिक मणि पत्थर यानी क्रिस्टलयुक्त है। स्फटिक मणि यानी सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक। यह पत्थर सूरज की किरणों को सबसे पहले अपनी ओर आकर्षित करता और उन्हें अपने आसपास मौजूद भक्तजनों को वापस सकारात्मक ऊर्जा के साथ आशीर्वाद के रूप में देता है। यहां सुबह सूरज की पहली किरणों के समय मूर्ति के निकट बैठकर अलग ही अनुभूति होती है।


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