कई दिनों तक चला गुरिल्ला युद्ध

साहसी रामसिंह ने युवकों को इकट्ठा करना जारी रखा और शेर सिंह से लगातार संपर्क में रहा। शेर सिंह ने लारेंस की सेना को पहाड़ों में उलझाए रखा। जलियांवाला में 600 से अधिक अंग्रेज सैनिक मारे गए, हजारों घायल हो गए। सिख सेना ही सहायता से राम सिंह ने जनवरी, 1849 ई. में अंगे्रजों पर आक्रमण कर दिया। उसने नूरपुर के कई इलाके छीन लिए। दुल्ला की धार को अपना गढ़ बनाया। एक सेना की टुकड़ी जनरल ब्हीलर के नेतृत्व में रामसिंह को पकड़ने आई। रामसिंह ने अंग्रेजों के विरुद्ध कई दिनों तक गुरिल्ला युद्ध जारी रखा, जिसके कारण अंग्रेजी सेना को भारी क्षति पहुंची। अंग्रेजों ने राम सिंह को तीनों ओर से घेर लिया। घमासान युद्ध हुआ। राजपूत वीरता से लड़े। धरती पर लाशें बिछीं और खून बहने लगा। अंग्रेजों को भी भारी हानि उठानी पड़ी। बहुत राजपूत वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। अंत में राम सिंह घोड़े पर सवार होकर तलवार निकाल कर साथियों सहित अंग्रेजों पर टूट पड़ा। अंग्रेज इतने भौंचके हो गए थे कि उन्हें पता भी न चला कि वह कहां से आया और कहां गया। विश्वासघात का एक अन्य उदाहरण सामने आया जिसे देखकर मातृ-भूमि भी रोई। उसने अपने मित्र ने राम सिंह को अंग्रेजों के हवाले कर दिया। अंग्रेजों ने उसे पकड़ कर सिंगापुर भेज दिया, जहां उसे भारी कष्ट दिए गए। अंत में वह वीरगति को प्राप्त हुए। उसके साथियों को फांसी दे दी गई।उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हिमाचल के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में लगातार परिवर्तन आते रहे। विभिन्न पहाड़ी रियासतों की पराजय के पश्चात भी जनसाधरण में राजशाही और सामंतवादी नेतृत्व का ही प्रभुत्व बना रहा। समस्त पहाड़ी रियासतों में अंग्रेजों द्वारा स्थापित नई प्रशासन व्यवस्था के विरुद्ध व्यापक असंतोष फैला हुआ था। अंग्रेज अधिकारियों द्वारा जनसाधरण के धार्मिक जीवन और सामाजिक रीतिरिवाजों में अनावश्यक हस्तक्षेप और पक्षपातपूर्ण नीतियों से भी लोगों में रोष फैल गया था। इस पहाड़ी क्षेत्र के सीधे-सादे लोगों को पिछड़ा, असभ्य और हीन समझकर तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता था। इस तरह की संकीर्ण और दोषपूर्ण प्रशासनिक व सामाजिक नीतियों के कारण लोगों में अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की भावना जाग उठी थी। जनसाधारण के साथ-साथ देशी शासक वर्ग भी अंग्रेजों की गुलामी और तानाशाही को सहन नहीं कर पा रहा था। शिमला की पहाड़ी रियासतों के देशी शासक अंग्रेज अधिकारियों के अनावश्यक हस्तक्षेप और कठोर नियंत्रण से असंतुष्ट थे। उधर, कांगड़ा की पहाड़ी रियासतों में अनेक राजवंशों के अस्तित्व को समाप्त करने की कठोर नीति के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र के राजाओं और सामंतों में भी असंतोष फैल गया था। शासक वर्ग अपनी खोई हुई सत्ता को पुनः प्राप्त करने के लिए तत्पर था।


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