ललिता सखीः श्रेष्ठ है सखी भाव की उपासना
सूरदास का उल्लेख
सूरदास ने राधाजी के अतिरिक्त ललिता का विशेष रूप से उल्लेख किया है और साथ ही चंद्रावली का भी। ललिता को राधा की परम प्रिय, घनिष्ठ सखियों के रूप में मान और खंडिता के प्रकरणों में चित्रित किया गया है। खंडिता प्रकरण में इन दो के अतिरिक्त सूरदास ने शीला, सुखमा, कामा, वृंदा, कुमुदा और प्रमदा का भी उल्लेख किया है। गोपियों में कृष्ण के प्रेम की अधिकारिणी इन्हें ही माना गया है। परंतु इनमें से किसी का राधा से ईर्ष्याभाव नहीं था। नित्य बिहारी राधा-कृष्ण की ललिता अभिन्न सहचरी हैं।
अवतार
सखीभाव की उपासना में उसके व्यक्तित्व को आदर्श रूप में स्वीकार किया गया है। माना जाता है कि आज से लगभग पांच शताब्दी पूर्व राधारानी की सखी ललिता ने स्वामी हरिदास के रूप में अवतार लिया था। स्वामी हरिदास वृंदावन के निधिवन के एकांत में अपने दिव्य संगीत से प्रिया-प्रियतम (राधा-कृष्ण) को रिझाते थे।
अन्य सखियां
राधाजी की परमश्रेष्ठ सखियां आठ मानी गई हैं, जिनके नाम निम्नलिखित हैं-ललिता, विशाखा, चंपकलता, चित्रा, तुंगविद्या, इंदुलेखा, रंगदेवी व सुदेवी। इन सखियों में से चित्रा, सुदेवी, तुंगविद्या और इंदुलेखा के स्थान पर सुमित्रा, सुंदरी, तुंगदेवी और इंदुरेखा नाम भी मिलते हैं।