महाकाल शिव मंदिर मानगढ़



जिला सिरमौर के पच्छाद में स्थित महाकाल शिव मंदिर मानगढ़ अद्भुत नक्काशी का खूबसूरत नमूना है। मंदिर का इतिहास पांडवों से जुड़ा है। प्राचीन मंदिर मध्य हिमालय की शिवालिक पहाडि़यों की गोद में मानगढ़ में स्थित है। जानकारी के अनुसार यह मंदिर 15 सौ साल से भी अधिक पुराना है व पांडवों द्वारा निर्मित है। इस मंदिर के दरवाजे को एक बड़ी शिला से काटकर बनाया गया है। जिस पर अद्भुत नक्काशी भी की गई है। मंदिर की मूर्तियों को पत्थरों से काटकर बनाया गया है। खास बात यह है कि जिस पत्थर को काटकर मंदिर व मूर्तियां बनी हैं, वह पत्थर इस क्षेत्र में पाया ही नहीं जाता। बताया जाता है कि पत्थरों को भीम कहीं से उठा कर लाए थे। मंदिर की दीवारों पर खुदे नक्षत्र दर्शन में पांच ग्रह ही दर्शाए गए हैं। जो इसके प्राचीनतम इतिहास के गवाह है। यह मंदिर हिमाचल में ही नहीं, बल्कि अपने प्राचीनतम इतिहास को लेकर पूरे भारत व विश्वभर में प्रसिद्ध है। विडंबना यह है कि पुरातत्व विभाग के अधीन चले जाने के बाद भी यह मंदिर राष्ट्रीय स्तर पर बैजनाथ शिव मंदिर की तरह अपनी पहचान नहीं बना पाया। जबकि इस शिव मंदिर व बैजनाथ शिव मंदिर की काफी सारी बातें एक दूसरे से मिलती है। मंदिर के पिछले हिस्से में गाय को मारते हुए बाघ व बाघ को मारते हुए अर्जुन के चित्रों को पत्थरों पर दिखाया गया है। वर्ष 1992 में मानगढ़ शिव मंदिर को पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन ले लिया है। वर्ष 2003-2004 में मंदिर के समीप खुदाई के दौरान पुरातत्व विभाग को गणेश मंदिर भी मिला था। जिसका निर्माण गुप्त काल की शैली में हुआ है। पांडवों द्वारा निर्मित शिव मंदिर के समीप ही भगवान कृष्ण का मंदिर है। स्थानीय भाषा में इस स्थान को ठाकुरद्वारा भी पुकारा जाता है। इसका अर्थ भगवान विष्णु का निवास स्थान है। कृष्ण मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ-साथ जन्माष्टमी पर मेले का आयोजन भी होता है। शिव व कृष्ण मंदिर के पास एक नाला बहता है, जो थोड़ी दूरी पर एक बड़े झरने का रूप धारण कर लेता है। इस झरने की ऊंचाई लगभग 125 मीटर से अधिक है।


-संजीव ठाकुर, नोहराधार


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