रामेश्वरम मंदिर



भारतीय धर्मग्रंथों में बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम यात्रा का अपना ही महत्त्व है। यह तीर्थ हिंदुओं के चार धामों में से एक प्रमुख है। इसके अलावा मंदिर में स्थापित शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक शिवलिंग माना जाता है। इस मंदिर को रामनाथस्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह भगवान शिव का एक हिंदू मंदिर है जो देशभर में प्रसिद्ध मंदिर है…
रामेश्वरम मंदिर हिंदुओं के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यह पवित्र तीर्थ स्थल तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। भारतीय धर्मग्रंथों में बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम यात्रा का अपना ही महत्त्व है। यह तीर्थ हिंदुओं के चार धामों में से एक प्रमुख है। इसके अलावा मंदिर में स्थापित शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। इस मंदिर को रामनाथस्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह भगवान शिव का मंदिर है, जो देशभर में बहुत प्रसिद्ध है। शिवलिंग के रूप में इस मंदिर में मुख्य भगवान श्री रामनाथस्वामी को माना जाता है।


मंदिर की शिल्पकला- रामेश्वरम का मंदिर भारतीय निर्माण कला और शिल्पकला का एक सुंदर नमूना है। इसका प्रवेश द्वार चालीस फुट ऊंचा है। मंदिर के अंदर सैकड़ों विशाल खंभें हैं, जो देखने में एक जैसे लगते हैं, परंतु पास जाकर जरा बारीकी से देखा जाए, तो मालूम होगा कि हर खंभे पर बेल-बूटे की अलग-अलग कारीगरी है।


रामनाथ की मूर्ति के चारों और परिक्रमा करने के लिए तीन प्राकार बने हुए है। इनमें तीसरा प्राकार सौ साल पहले पूरा हुआ। इस प्राकार की लंबाई चार सौ फुट से अधिक है। दोनों और पांच फुट ऊंचा और करीब आठ फुट चौड़ा चबूतरा बना हुआ है। चबूतरों के एक ओर पत्थर के बड़े-बड़े खंभो की लंबी कतारे खड़ी हैं। प्राकार के एक सिरे पर खडे होकर देखने पर ऐसा लगता है मानो सैकड़ों तोरण द्वार का स्वागत करने के लिए बनाए गए हैं। इन खंभों की अद्भुत कारीगरी देखकर विदेशी भी दंग रह जाते है।


चामत्कारिक है यहां तीर्थम से निकलने वाला पानी- रामनाथस्वामी मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां स्थित अग्नि तीर्थम में जो भी श्रद्धालु स्नान करते हैं उनके सारे पाप धुल जाते हैं। इस तीर्थम से निकलने वाले पानी को चामत्कारिक गुणों से युक्त माना जाता है। लोगों का मानना है कि इस पानी में डुबकी लगाने वाले लोगों के सभी दुख दूर होते हैं और पापों से मुक्ति मिलती है। ये भी कहा जाता है कि इस पानी में नहाने के बाद सभी रोग-कष्ट दूर हो जाते हैं। इसके अलावा इस मंदिर के परिसर में 22 कुंड हैं, जिसमें श्रद्धालु पूजा से पहले स्नान करते हैं।


रामायण काल से जुड़ा है मंदिर में स्थापित शिवलिंग- रामायण के अनुसार एक साधु ने श्रीराम से कहा था कि शिवलिंग स्थापति करने से वह रावण के वध के पाप से मुक्ति पा सकते हैं। इसलिए श्रीराम ने भगवान हुनमान को कैलाश पर्वत पर एक शिवलिंग लाने के लिए भेजा, लेकिन वह शिवलिंग लेकर समय पर वापस न लौट सके। इसलिए माता सीता ने मिट्टी की मदद से एक शिवलिंग तैयार किया, जिसे रामनाथ कहा जाता है। बाद में हनुमानजी के आने पर पहले प्रतिष्ठित छोटे शिवलिंग के पास ही राम ने काले पत्थर के उस बड़े शिवलिंग को स्थापित कर दिया। ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मंदिर में आज भी पूजित हैं। इसी कारण मंदिर को वैष्णववाद और शैववाद दोनों का संगम कहा जाता है।


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