अप्रैल फूल

वीनू ने पिछले साल मुझे मूर्ख बनाया था। बड़ी पक्की सहेली की दुम बनती है। सारे में मेरी, वह खिल्ली उड़वाई थी कि मैं महीने भर वीनू से बोली नहीं। वह तो वीनू का बर्थ डे, न आता तो मैं उससे तब भी न बोलती। मालूम है, उसने क्या किया था। उसने न जाने कैसे एक कागज पर गधे की तस्वीर बनाकर मेरी ड्रेस के पीछे चिपका दी थी। उस पर लिखा था ‘मैं पत्थर हूं। बच के निकलना! सारे दिन सब बच्चे मेरा मजाक बनाते रहे। यह बहादुरे का हमारा नौकर, मुझे देखकर हंसते-हंसते लोटपोट हो गया था। बदतमीज कहीं का! मुझे ऐसा रोना आया था कि क्या बताऊं! मैंने भी सोचा कि वीनू के जन्मदिन के बहाने पिछले साल का बदला सबसे एक साथ लिया जाए। ऐसा बदला कि सारे के सारे हमेशा याद रखें। पापा के एक दोस्त नाई की मंडी में रहते हैं। उनका लड़का परेश तेरह साल का है, मुझसे तीन-चार साल बड़ा। मैंने उसी को अपना हमराज बनाया। उसने बड़े सुंदर-सुंदर अक्षरों में एक निमंत्रण पत्र लिखा-वीनू की मम्मी की तरफ से, कि सब बच्चों को वीनू के जन्मदिन के उपलक्ष में पहली अप्रैल को चाय का निमंत्रण है। सभी बच्चे जरूर-जरूर आएं। नीचे निमंत्रित बच्चों के नाम थे, जिनमें सबसे ऊपर मेरा नाम था। जिससे किसी को मेरे ऊपर शक न हो नीचे एक छोटी-सी सूचना भी थी कि कोई भी रेवा से इसका जिक्र न करें क्योंकि अचानक सबको देखकर उसे बड़ी प्रसन्नता होगी। यह सब लिखवाने और किसी से न कहने के लिए परेश को पूरे डेढ़ रुपए वाली चाकलेट की घूस देनी पड़ी। मैंने सोचा था, आधी चाकलेट तो वह मुझे देगा ही और इस तरह मेरे आधे पैसे वसूल हो जाएंगे, पर उसने सिर्फ एक चौकोर टुकड़ा मेरे हाथ में थमा दिया, बाकी सब खुद हड़प गया। नदीदा कहीं का! अब सवाल था, कि यह निमंत्रण किससे भिजवाया जाए। सो मैंने वीनू के घर की महरी को पकड़ा और खूब समझा दिया कि सिवाय वीनू के वह सबके पास इस चिट्ठी को देकर दस्तखत करा लाए। अब पिंकी, छुन्नू, दीना, पांचू सभी बड़े खुश। मैं भी बड़ी खुश। इसी के लिए तो ढ़ाई रुपए खर्च किए थे। तो यही बाते हुईं कि कौन क्या पहन कर पार्टी में जाएगा। भी सब मिले, कौन क्या उपहार ले जाएगा। पिंकी फाउंटेन पेन दे रही थी। रेवा की मां एक राइटिंग पैड और लिफाफे लाई थी। यह सोचकर कि भी सब मिले, मथुरा में रहती है मां-बाप को चिट्ठी लिखने के काम आएगा। साथ में तस्वीरों वाले पोस्ट कार्डों का सेट भी था। छुन्नू ने एक ग्लोब खरीदा था। दीना और पांचू क्या ले जाएंगे, पता नहीं था, क्योंकि उन दोनों ही के पापा अभी तक कुछ लाए नहीं थे। मैंने भी कह दिया कि मेरे पापा ने कहा है कि कोई बढि़या चीज लाएंगे, देखों क्या लाकर देते हैं। मन ही मन मुझे बड़ी हंसी आ रही थी कि सारे के सारे खूब उल्लू बन रहे हैं। दूसरे दिन ही पहली अप्रैल था। सुबह से मेरे मन में शाम का नजारा देखने की बेचैनी थी। शाम को घर आकर मैंने जल्दी से एक डिब्बा लिया। उसमें खूब से कागज भरे, बीच में कागज लिपटा एक पत्थर रखा। उस पर लिखा ‘फर्स्ट अप्रैल फूल’ सोचा था बाहर से ही वीनू को दे दूंगी कि मुझे जरूरी काम से जाना है, मैं आ न सकूंगी। रास्ते में सोचती जा रही थी कि ये लोग लौटते हुए या वीनू के घर से निकलते हुए दिखाई दे जाएं, तो ही मजा रहे। पर न तो मुझे रास्ते में कोई दिखा, न वीनू के घर से निकलता हुआ ही मिला। इसी उलझन में मैं बाहर के दरवाजे तक पहुंची, तो सामने महरी बैठी तमाखू खा रही थी। मुझे देखते ही काली-काली बत्तीसी निपोरकर बोली, आवौ, मिन्नी रानी, आवौ। सबकै सब खाय रहे हैं। तुमहु जावौ, माल उड़ावौ। तुम्हार चिठिया ने तो खूब काम बनावौ। तभी वीनू मुझे दरवाजे पर देखकर भागता हुआ आया। ‘आओ, मिन्नी, आओ। तुमने बड़ी देर कर दी। तुम्हारा इंतजार करते-करते अभी-अभी खाना शुरू किया है। मैं घबरा गई। ‘क्या तेरा सचमुच आज जन्म दिन है। अरे हां, सच ही तो है। और तू क्या मजाक समझ रही थी कि आज सबको ‘अप्रैल फूल’ बनाया जा रहा है, तभी पांचू हाथ में मिठाई-नमकीन भरी प्लेट लेकर बाहर आ गया। हाय! कितनी सारी चीजें थीं उसमें, सब मेरी पसंद की। मुंह में रसगुल्ला ठूंसते हुए पांचू बोला, वाह, मिन्नी रानी, इतनी देर कर दी तुमने! मैं तो वीनू से कह रहा था कि मिन्नी नहीं आएगी। उसकी प्लेट भी मुझे ही दे दो। हर साल मम्मी से कहता था पर उन्होंने कभी मेरा जन्मदिन नहीं मनाया। कह देती थी। पहली अप्रैल, को कोई नहीं आएगा सब समझेंगे ‘अप्रैल फूल’ बना रहे हैं। अब की देखो, मम्मी ने बिना मुझे बताए ही सबको बुला लिया। सच, मम्मी बहुत अच्छी हैं अच्छा, अब चलो न उसने अब फिर मेरा हाथ पकड़ लिया। पर मैं अपना हाथ छुड़ा कर तेजी से बाहर भागी वीनू , मैं बाद में आऊंगी कहती हुई मैं भाग चली। रास्ते में फिर महरी दिख गई। बोली, क्यों, रानी, लौट काहे आई, अरे, तुम्हारी चिठिया बहू जी ने पढ़ी थी, वह तुम से बहुत खुश हैं। जावौ तुम्हें डबल हिस्सा मिलेगा। तो यह बात है! इस महरी की बच्ची ने ही सारी गड़बड़ की पर वीनू का तो सचमुच आज ही जन्मदिन है। कितनी बढि़या-बढि़या चीजें थी पांचू की प्लेट में। मैंने नहीं खाई। मम्मी घर में होतीं, तो उनसे ही जल्दी से घर में से ही कुछ निकलवा कर वीनू के लिए ले जाती, पर उन्हें भी पार्टी में आज ही जाना था। साथ में टिंकू को भी ले गईं मैं यहां भगवान करे वह भी वहां खूब बुद्धू बनाई जाएं मुझे इतना रोना आया कि पलंग पर गिरकर खूब रोई। तभी बहादुरे ने आ कर पूरा पैकेट खोल डाला। मिन्नी, यह क्या है? क्या लाई है तू सिर लाई हूं तेरा! मैंने पैकेट उसके हाथ से झपटना चाहा कि उसमें से खुलकर सारे कागज और पत्थर भी नीचे गिर पड़े, जिन पर लिखा था ‘अप्रैल फूल’! बहादुरे जोर से हंसने लग पड़ा मिन्नी आज सच में तेरा अप्रैल फूल बड़ा जबरदस्त बना। हा-हा- हा-हा। हैप्पी अप्रैल फूल।


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