नवजात शिशुओं में सांस की गति से होती है रोगों की पहचान: डा. मौर्य

जिले में प्रशिक्षित आशाएं शिशुओं की सांस की गिनती से रोग की पहचान कर भेजती हैं स्वास्थ्य केन्द्र



 नवजात शिशु की डिजिटल घड़ी से सांसे गिनती आशा बहू।


बहराइच।


नवजात शिशुओं द्वारा एक मिनट मे ली गयी साँसों की गिनती से उसकी बीमारियेां की पहचान की जा सकती है। इससे बच्चों को गम्भीर बीमारियों बचाने में आसानी होगी। यह जानकारी बालरोग विशेषज्ञ डा. सोमनाथ मौर्य ने दी। डा. मौर्य ने बताया कि यह जन्म से दो महीने तक के शिशुओं की एक मिनट मे ली गयी सांसें 60 या 60 से अधिक है, तो शिशु की सांस तेज है और इनमें इन्फेक्शन (गंभीर जीवाणु संक्रमण) की संभावना हो सकती है। ऐसे शिशुओं को तुरंत उपचार की आवश्यकता होती है।
डा. मौर्य ने बताया कि बीमार शिशुओं की गतिविधियां बड़े बच्चों की तुलना मे कुछ अलग होती हैं। इनमे अक्सर सुस्त पड़ना, शरीर का कम तापमान या बुखार जैसे आम लक्षण ही दिखाई देते हैं। तेज सांस शिशुओं मे गंभीर बीमारी का संकेत है। ऐसे शिशु, सामान्य शिशुओं की तरह दिखाई दे सकते हैं, लेकिन उपचार न मिलने पर इनकी स्थिति गंभीर हो सकती है और कुछ घंटों या दिनों मे इनकी मृत्यु भी हो सकती है। इन्ही कारणों से नवजात शिशुओं की देखभाल अलग ढंग से की जाती है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य के डीसीपीएम मो. राशिद ने बताया कि जिले की 3042 आशाओं को नवजात शिशुओं के देखभाल का तरीका अलग-अलग कई प्रशिक्षणों के माध्यम से सिखाया गयाहै। प्रशिक्षित आशाएँ गृह भ्रमण के दौरान नवजात शिशुओं की अन्य देखभाल के साथ साथ साँसों की गिनती भी करती हैं। इसके लिए विभाग द्वारा इन्हे डिजिटल घड़ी भी उपलब्ध कराया गया है। उन्होने बताया कि एक मिनट मे ली गयी साँसों की गति तेज होने पर आशाएँ शिशुओं को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर रेफर भी करती हैं। उम्र के अनुसार तेज सांस जन्म से दो माह तक एक मिनट में 60 या 60 से अधिक सांसे, 2 माह से 12 माह तक एक मिनट में 50 या उससे अधिक सांसें तथा 12 माह से 5 साल तक यदि शिशु की सांसें 1 मिनट में 40 या उससे अधिक है तो इसे तेज सांसद माना जाता है।


 


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