कछुए की कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं : डॉ.जीतेन्द्र शुक्ला


कछुआ दिवस की पूर्व संध्या पर ए जे एस इंस्टीट्यूट में हुई कार्यशाला 
लखनऊ।


कछुआ धरती का प्रमुख जलीय जीव  है। भारतीय संस्कृति में कछुए को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। किसी नदी या जलाशय की पानी की शुद्धता का आकलन हमारे पूर्वज उस में पाए जाने वाले कछुए से लगाते थे, क्योंकि इनकी उपस्थिति उस जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलित होने का संदेश देता है। यह विचार कछुआ संरक्षण की पूर्व संध्या पर राजधानी स्थित ए जे एस इंस्टीट्यूट में आयोजित कार्यशाला में वन्यजीव विज्ञानी डॉ जितेंद्र शुक्ला ने व्यक्त किये।
कार्यशाला में डॉ. शुक्ला ने कहा कि जलीय जीव कछुआ  इस पृथ्वी पर 20 करोड़ साल पहले आया । संपूर्ण विश्व में इनकी 225 प्रजातियां पाई जाती है। भारत में कछुए की 55 प्रजातियां है जिनमें कुछ नाम साल, चिकना, चितना, रामानंदी आदि प्रमुख है। वर्तमान समय में कछुए की कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर है इसका प्रमुख कारण कछुओं की तस्करी व फैंगसुई शास्त्र के कारण लोगों का इनको पालने का शौक उन्हें प्राकृतिक वातावरण से दूर  करता है जिसके कारण इनकी संख्या में दिन-प्रतिदिन कमी आती जा रही है। शीघ्र ही यदि इनके संरक्षण का प्रयास नहीं किया गया तो यह जलीय जीव सदा के लिए विलुप्त हो जाएगा। इसी विषय को लेकर संपूर्ण विश्व में विश्व कछुआ दिवस 23 मई को मनाया जाता है।  आयोजित कार्यशाला में दिया तथा छात्रों को कछुआ संरक्षण के टिप्स भी सिखाए गए।  इस अवसर पर संस्थान की प्रबंधक पूजा मैंम एवं जनसंपर्क अधिकारी अमित शुक्ला, यदुनाथ सिंह मुरारी, डॉ. बी पी सिंह एवं अभिषेक शुक्ला उपस्थित रहे। 


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