राजस्थान की बीकानेर सीट पर दो भाईयो में सियासी दिलचस्प जंग


राजस्थान विधानसभा चुनाव जीत कर सत्ता में वापसी करने वाली कांग्रेस को उम्मीद है कि लोकसभा में उसका प्रदर्शन बेहतर होगा. वहीं, भाजपा विधानसभा चुनाव की हार का बदला लोकसभा चुनाव में लेने के लिए पूरा जोर लगाये हुई है. वैसे राजस्थान में परंपरागत तौर पर देखा गया है कि विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने वाले दल काे लोकसभा में अच्छी सफलता मिलती है, लेकिन भाजपा का मानना है कि मोदी फैक्टर इस मिथक को खत्म कर देगा. राजस्थान की प्रतिष्ठित बीकानेर सीट पर दिलचस्प जंग दिख रही है.
दो पूर्व अधिकारी और रिश्ते में भाई के बीच सियासी लड़ाई के कारण यह सीट महत्वपूर्ण हो गयी है. भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल हैं, तो कांग्रेस की ओर से उनके मौसेरे भाई मदन गोपाल मेघवाल मैदान में है. अर्जुन मेघवाल राजनीति शास्त्र में पोस्टग्रैजुएड, लॉ में स्नातक के साथ ही यूनिवर्सिटी ऑफ फिलीपींस से एमबीए भी किया है. वहीं, मदन गोपाल आइपीएस की नौकरी छोड़ कर विधानसभा चुनाव में ही राजनीतिक पारी खेलने की तैयारी में थे, लेकिन तब उन्हें मौका नहीं मिला. इस बार कांग्रेस ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया है.
गौरतलब है कि वर्ष 2004 में भाजपा के टिकट पर फिल्म स्टार धर्मेंद्र बीकानेर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. इससे पहले कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे बलराम जाखड़ भी इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके है. परिसीमन से पहले इस सीट पर जाटों का दबदबा था, लेकिन नागौर जिले की जायल विधानसभा के इस क्षेत्र से अलग हो जाने के कारण इस सीट पर दलितों की आबादी अधिक हो गयी. वर्ष 2008 में परिसीमन के बाद से यह क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है.
पिछले तीन लोकसभा चुनाव से बीकानेर लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है. यहां भाजपा की पकड़ मजबूत है. पिछले दो चुनाव से अर्जुन राम मेघवाल इस सीट से जीतते आ रहे हैं, लेकिन लगातार दाे बार से चुनाव जीत रहे मेघवाल को इस बार कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. भाजपा के दिग्गज नेता और कोलायत से सात बार विधायक रहे देवीसिंह भाटी मेघवाल काे उम्मीदवार बनाये जाने से मुखर विरोधी हो गये हैं. वहीं अर्जुन मेघवाल को पिछले 10 साल का हिसाब भी देना पड़ रहा है.
भाटी का कोलायत, बीकानेर पूर्व और नोखा में प्रभाव है. साथ ही अर्जुन को भाटी और अन्य नाराज भाजपा विधायकों के विरोध से व्यक्तिगत रूप से भी जुझना पड़ रहा है. कांग्रेस को उम्मीद है कि राज्य सरकार के कामकाज और दो बार से मेघवाल के सांसद रहते हुए क्षेत्र की उपेक्षा का फायदा उसे मिलेगा. रामप्रकाश भाटी बताते हैं, 'मेघवाल को यहां की जनता ने 10 साल से देख-परख लिया है. अब जरूरत है कि नये उम्मीदवार को मौका दिया जाये.'
अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के वोट बैंक यहां बंटे हुए दिखते हैं. मुसलमानों का रुझान कांग्रेस की ओर है, जबकि ब्राह्मण, राजपूत और वैश्यों का झुकाव भाजपा की ओर है. विकास शर्मा बताते हैं, 'यह सीमावर्ती इलाका है.
पाकिस्तान की हरकतों का यहां सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है. सरहद पर किसी भी गतिविधियों का प्रभाव यहां पड़ता है. इसलिए यहां पर स्थानीय मुद्दा के बनिस्पत राष्ट्रीय मुद्दा महत्वपूर्ण रहता है.' यही कारण है कि भाजपा का राष्ट्रवाद लोगों को आकर्षित कर रहा है.
भाजपा प्रत्याशी भी खुद के लिए नहीं, नरेंद्र मोदी को फिर पीएम बनाने के लिए वोट मांग रहे हैं. वहीं, कांग्रेस गहलोत सरकार के काम, किसानों की कर्जमाफी की चर्चा कर रही है. अर्जुन राम से उनके वायदों को आधार बना कर 10 साल का हिसाब भी मांग रही है. कांग्रेस को भरोसा है कि बीकानेर की जनता इस बार उसे मौका देगी.
मुख्य मुद्दा
पीने और सिंचाई का पानी, सीमावर्ती इलाकों में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी के अलावा अवैध खनन.
राष्ट्रीय मुद्दे हमेशा हावी
यहां के चुनावों में हमेशा स्थानीय मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय मुद्दे हावी रहे हैं. स्थानीयता को दरकिनार कर यहां की जनता ने दिग्गज नेताओं को जिताया है. इस बार भी स्थानीयता के बनिस्पत राष्ट्रवाद और मोदी को एक बार फिर से पीएम बनाने के नाम पर ही भाजपा लोगों के बीच जा रही है.
लोकसभा चुनाव, 2014 का परिणाम
उम्मीदवार/पार्टी वोट वोट%
अर्जुन राम मेघावत, भाजपा 5,84,932 62.84
शंकर पन्नू, कांग्रेस 2,76,853 29.74
मंगीलाल नायक, एनयूजेडपी 16,839 1.81
डॉ जीएस दाबी, आप 14,148 1.52
भूवरलाल, बसपा 1,387 1.22
जीत का अंतर 3,08,079 33.10
इस संसदीय क्षेत्र में आठ विधानसभा सीटें : बीकानेर पूर्व, नोखा, लूनकरणसर और अनूपगढ़ सीट पर भाजपा, जबकि बीकानेर पश्चिम, कोलायत और खाजूवाला पर कांग्रेस और डूंगरगढ़ पर माकपा का कब्जा है.


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