लीलावती बालगृह के बच्चों का किया गया सम्मान

संस्कार पाठशाला में प्रियांश अवस्थी का मनाया गया जन्मदिवस



लखनऊ।


गीता परिवार की ओर से चल रहे तीन दिवसीय अर्जुन भव संस्कार पथ शिविर का समापन रविवार को हुआ। इस मौके पर विजेता बच्चांे को पुरस्कृत किया गया। लीलावती बालगृह मोतीनगर में आदर्श शिविरार्थी में रिया, गीता श्लोक में अवंतिका, ध्यान में सुप्रिया, रचनात्मक कार्य में मुस्कान, अनुशासन में दिव्या, प्रश्नोत्तरी में माही ने बाजी मारी। कुमकुम भट्नागर के कुशल निर्देशन में शिविर में 80 बालिकाओं ने संस्कार रूपी ज्ञान के भण्डार में गोते लगाये। शिविर समापन पर बालगृह के बच्चों के संग शिवांश अवस्थी का जन्मदिवस सुदिनं सुदिनं जन्मदिनम तव, भवतु मंगलम जन्मदिनम, विजयी भव सर्वत्र सर्वदा, भवतु मंगलम जन्मदिनम के गीत गाते हुए भारतीय रीति रिवाजों से हर्षोल्लास के साथ मनाया गया, इस मौके क्या छोटे-बड़े सभी ने मचाया धमाल। रिद्धि सिद्धि पैलेस मंदिर बीकानेर में रंग भरो प्र्रतियोगिता में गर्विता, भगवद्गीता में आरुषि धानुका, महाभारत के पात्रों के नाम में श्रेया मुंहड़ा, सर्वश्रेष्ठ शिविरार्थी में गौतम रामावत अव्वल रहे। शिविर का निर्देशन पूजा गोयल व अन्य सत्रों का आयोजन विशाल कश्यप, कविता वर्मा कर रही थी। शिविर समापन पर मुख्य अतिथियों में शिव कुमार अवस्थी, अभयकांत अवस्थी, डॉ. राकेश रावत, नरेश गोयल मौजूद थे। शिविर में सिखायी बातों को संस्कारी बच्चों ने शिविर वृतांत की मनमोहक छठा मुख्य अतिथियों के समक्ष बिखेरी। पूजा गोयल ने मुख्य अतिथियों का स्वागत एवं अभिनंदन पुष्पगुच्छ एवं अर्जुन भव का स्मृति चिन्ह भेंट कर किया। डॉ. राकेश रावत ने बताया कि भगवद्गीता को आधार मानकर हम बच्चों को संस्कार की बातें सिखा सकते है। नरेश गोयल ने बताया कि माता पिता व बड़ों का आदर, संत्कार कर हम सभी बच्चांे का परम कर्तव्य है। 150वें अर्जुन भव संस्कार पथ शिविर के पूर्ण होने पर स्वामी गोविन्द देव गिरि महाराज का कहना है गीता परिवार उ.प्र. नित नए आयाम पाते हुए लोकमन संस्कार के भाव से अर्जुन सम सैकड़ों की सेना के साथ संस्कार पथ पर नित्य अग्रसर है। उन सभी पता है कि तप से ही जीवन में तेज आता है तेजोऽम सीखा है इस गीता परिवार के भावी राष्ट्रनायकों ने। 150वें शिविर पूर्ण के उपलक्ष्य में कम से कम पांच शिविरों में प्रतिभाग किये गये कार्यकर्ताओं एवं स्वयंसेवकों को नई ड्रैसअप वितरण किया गया। शिव कुमार अवस्थी ने कहा परिवार एक पाठशाला है, बच्चा यहां जो भी सीखता है वहीं उसके संस्कार बन जाते हैं। बच्चा उस कोमल डाल के समान है, जिसे जिस ओर चाहो मोड़ा जा सकता हैं, या कुम्हार अपने इच्छानुरूप पात्र बना सकता है। इस कच्ची मिट््टी में जिस प्रकार के संस्कार का बीज रोपण करे जायेगे, उसी के अनुरूप पात्र निर्मित हो जायेंगे। अब यह मां या परिवार, गुरुजनों पर निर्भर करता है कि वे किस प्रकार के संस्कार भरना चाहेंगे। इसलिए बाल्यकाल से ही बच्चों में संस्कारों का भाव भरना चाहिए। उनका कहना था हमें तीज त्योहार व पर्व अपनी भारतीय संस्कृति के अनुसार मनाना चाहिए तभी हम भारतीय संस्कृति, संस्कारों को विलुप्त होने से बचा पायेगे यही हमारी भारववर्ष की पहचान, अमूल्य धरोहर, विरासत हैं।


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