बाघ रहेंगे तो जंगल रहेंगे

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पर्यावरणीय असंतुलन का परिणाम बाघ और इंसानों का संघर्ष
-डॉ. जितेंद्र शुक्ला
वन्यजीव विशेषज्ञ 
फाउंडर डायरेक्टर -ग्रीन चौपाल 
प्रसिद्ध वन्यजीव प्रेमी आदमखोर बाघों के शिकारी कार्बेट ने कहा था कि मुझे भारत में बाघों की संख्या शीघ्र समाप्त होती नजर आ रही है, क्योंकि बाघ वोट नहीं देते। पूर्व कार्बेट का यह अनुमान वर्तमान काल में बिल्कुल सटीक सत्य साबित हो रहा है। अपनी नैसर्गिक प्रवृत्ति से खूंखार होने के बाद भी इंसानों पर हमला डर के कारण नहीं करता है। और यही तर्क है जो बाघों को इंसान से दूर जंगल में छिपकर रखता है। परंतु वर्तमान समय में मनुष्य के स्वार्थ भाव के कारण दिन प्रतिदिन जंगल काटे जा रहे हैं। जंगली जीवो के आवास और भोजन की उपलब्धता में कमी आ रही है, जिसके फलस्वरूप बाघों को जंगल से बाहर इंसानों की बस्तियों व आवास की ओर आने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है तथा यह एक इंसान वा बाघों के संघर्ष की शुरुआत करता है बीते दिनों में कई घटनाएं प्राप्त हुईजो कियह बताती है कि बाघों के नैसर्गिक आवासों में मानव का दखल तेजी से बढ़ रहा है।
 इन दिनों देश में मानव एवं वन्य जीवो के मध्य संघर्ष एक ज्वलंत समस्या बनी हुई है देश के अलग-अलग वन क्षेत्रों से अक्सर यह प्रमुखता से समाचार आ रहे हैं जहां जंगली वन्यजीव विशेषकर बाघव मानवों का टकराव बढ़ रहा है। केंद्र सरकार बाघों को संरक्षित करने के लिए प्रोजेक्ट टाइगर चला रही है। यह प्रोजेक्ट टाइगर तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक जंगल के आसपास की इंसानी बस्तियों को जंगल व बाघो की उपयोगिता के विषय में समझाया नहीं जाता। आंकड़े भले बाघों की संख्या बढ़ा रहे हैं पर हकीकत एकदम विपरीत है। भारत में बाघों की दुनिया मरती जा रही है। 
पिछले कुछ सालों में मानव और बाघों के बीच शुरू हुआ संघर्ष बढ़ती आबादी के साथ प्राकृतिक संपदा एवं जंगलों का दोहन और नियोजित विकास बाघों को अपना साम्राज्य छोड़ने के लिए विवश कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र का जंगल या उत्तरांचल का वन क्षेत्र हो या फिर मध्य प्रदेश महाराष्ट्र आदि प्रदेशों के जंगल से बाघों के बाहर निकलने की घटनाएं तेजी से बढ़ रहे हैं और बेकसूर ग्रामीण उनका शिकार बन रहे हैं।आखिर बाघ और मानव के बीच दिनों दिन संघर्ष  क्यों बढ़ता जा रहा है और बाघ अपना प्राकृतिक आवास छोड़कर जंगल से बाहर इंसानी बस्तियों की ओर क्यों आ रहे हैं। इस विकट समस्या का समाधान किया जाना आवश्यक है। संपूर्ण विश्व में भारत में सबसे ज्यादा बाघ पाए जाते हैं तथा विश्व के कई देशों के बाघ पूर्ण रूप से विलुप्त हो चुके हैं, अतः इस प्राकृतिक भूषण को संरक्षण की नितांत आवश्यकता है और बाघोको इंसानों की गोली का शिकार बनाया जाने से रोकना होगा नहीं तो वहदिन ज्यादा दूर नहीं कि भारत की धरा से बाघ विलुप्त हो जाएंगे।
अभी पिछले महीने उत्तर प्रदेश के जिला लखीमपुर खीरी एवं पीलीभीत के जंगलों से बाहर निकलते बाघों ने विभिन्न जगहों में इंसानों को अपना निवाला बनाया और प्रतिक्रिया स्वरूप इंसानों ने इन बाघों को भी घेरकर मार दिया। महाराष्ट्र के यवतमाल में एक मादा बाघिन अवनि भी इंसानी गोली का शिकार हुई। इसी संघर्ष के कारण पिछले साल आधा दर्जन बाघों के शव मिल चुके हैं। यह एक प्रकार से बाघों पर इंसानों की त्रासदी है। बाघ जन्म से हिंसक और खूंखार होते हैं परंतु मानावभक्षी नहीं होता इंसानों से डरने वाले वनराज बाघ को मानव जनित अथवा प्राकृतिक परिस्थितियां मानव पर हमला करने को विवश करती है। आखिर सवाल यह पैदा होता है कि बाघ अपने प्राकृतिक आवास जंगल से बाहर क्यों निकलते हैं। इसके लिए स्वयं मानव जनित कारण ही उत्तरदाई है।
मानव अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए ना केवल जंगल काट रहा है वरन वन्यजीव प्रजातियों का शिकार भी कर रहा है। और मानव के इस कृत्य के कारण वन का संपूर्ण परिस्थिति तंत्र तहस-नहस हो रहा है, क्योंकि बाघ इस तंत्र के सर्वोच्च शिखर पर आता है और जंगल की अन्य प्रजातियां इसकी खाद्य श्रंखला का अभिन्न हिस्सा होती है जो कि मानव के द्वारा अवैध शिकार की भेंट चढ़रही है और बाघ भोजन की अनुपलब्धता के कारण जंगल से बाहर इंसानी बस्तियों में आता है जहां इंसानों और बाघों के मध्य संघर्ष देखने को मिलता है। इसके अतिरिक्त कुछ प्राकृतिक निर्मित कारण भी बाघ को जंगल से बाहर आने के लिए प्रेरित करते हैं इसमें जंगल के अंदर पाए जाने वाले घास के मैदानों को संकुचित होना भी है। वास्तव में जंगल के अंदर प्राकृतिकघासकेमैदानपाए जाते हैं  जहां शाकाहारी जीव जंतु चरने के लिए आते हैं और बाघ को आसानी से शिकार मिलजाता है परंतु प्राकृतिक जलवायु परिवर्तन आदि के कारण यह घास के मैदान सिकुड़ते जा रहे हैं जिससे यह जीव जंतु अपने भोजनको आसानी से नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं और इधर उधर भटकते हुए कई बार बाघअपने शिकार की तलाश में जंगल से बाहर आ जाता है। अगर बाघ और इंसानों के मध्य इस संघर्ष को रोकना है तो हम इंसानों को जंगल में अनावश्यक दखल देना बंद करना होगा इसके अतिरिक्त वन्यजीवों के अवैध शिकार को बहुत सख्ती से रोका जाए तथा जंगल के आसपास खेती के लिए अतिक्रमण पर भी रोक लगानी चाहिए, क्योंकि जंगल से लगी हुई भूमि पर इंसानों के द्वारा गन्ने आदि की फसलें बोई जाती है जो कि दूसरे जीवो को आश्रय स्थल के रूप में विकसित होती हैं। परिणामस्वरूपबाघ भी जंगल से लगे हुए इन आश्रय स्थलों में आ जाता है जहां पर उसका आमना-सामना इंसानों से होता है।अतः बाघों के प्राकृतिक आवास को अनावश्यक अतिक्रमण से बचाना होगा जिससे कि मानव एवं बाघ एक दूसरे को प्रभावित किए बिना रह सकें और ऐसा ना किए जाने पर यह इंसान और बाघ के मध्य संघर्ष चलता रहेगा और इस संघर्ष में निस्संदेह सर्वाधिक हानि अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे बाघ का ही होगा और भारत के जंगलों में पाई जाने वाली यह बड़ी बिल्ली सदैव के लिए विलुप्त हो जाएगी। जिसका परिणाम यह आएगा कि इंसानों का जंगलों में और दखल बढ़ जाएगा और जंगल ही समाप्त हो जाएंगे। अतः हम इंसानों को यह समझ लेना चाहिए कि बाघ रहेंगे तो जंगल रहेंगे और जंगल रहेंगे तो मानवीय सभ्यता सुरक्षित रहेगी।


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