दुस्साहस, आखिर कब तक लहूलुहान होती रहेगी खाकी
लापरवाही, एक बार फिर खून से नहाई वर्दी
लखनऊ।
संभल, चंदौसी में दो सिपाहियों बृजपाल व हरेंद्र सिंह की हत्या के बाद सूबे में बदमाशों के हाथों खाकी खून से नहा गई है। इस घटना ने पुराने जख्मों को ताजा कर दिया है। यहां राह का कांटा बनने पर पुलिसकर्मियों का खून बहाने का चलन बढ़ा पुराना है। दो सिपाहियों की हत्या के बाद यूपी के वह सभी पुलिस अधिकारी व कर्मचारी सहम गए हैं।
सवाल है कि जिन पर दूसरों की सुरक्षा का जिम्मा है वह खुद अपराधियों के निशाने पर हैं। अपराधियों पर लगाम कसने और जेल से कैदियों को ले जाते समय पुलिसकर्मियों को जिस तरह से निशाना बनाया जा रहा है, उससे वर्दी का इकबाल गिरता जा रहा है।
यूपी में लगातार पुलिस का मनोबल बढ़ने के बजाय धाराशायी हो रहा है, जबकि अपराधियों की सक्रियता घटने के बजाय बढ़ती जा रही है। प्रदेश में जब पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह को डीजीपी बनाया गया था तब लोगों को उम्मीद जागी थी कि अब अपराधियों की सक्रियता ढीली पड़ेगी, लेकिन हुआ इसके ठीक उल्टा। बीते कुछ साल से जहां अपराधियों की सक्रियता से कई पुलिसकर्मियों को अपनी जान गवानी पड़ी है। गौर करें तो जिस खाकी के खौफ से बड़े-बड़े अपराधियों के पसीने छूट जाते थे, वही खाकी संकट में है। आए दिन हो रहे हमलों से पुलिस की वर्दी लहूलुहान हो रही है। इसे रोकने के लिए पुलिस अधिकारियों ने कई तरह की योजनाएं तैयार की, लेकिन सब योजनाएं फ्लॉप साबित होती जा रही है, लिहाजा अपराधियों का हौसला पस्त होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है।
पुलिस पर भारी पड़ रहे अपराधी
यूपी में सिपाही ही नहीं जेल कर्मी भी बदमाशों की भेंट चढ़ चुके हैं। गौर करें तो 23 नवंबर 2013 को बनारस जिला जेल के डिप्टी जेलर अनिल त्यागी की कैंट थाना क्षेत्र में गोली मारकर हत्या कर दी गई, 17 अप्रैल 2012 बरेली सेंट्रल जेल के बंदी रक्षक मुकेश की हत्या कर दी गई, 1 अगस्त 2007 को चौधरी चरण सिंह मंडलीय कारागार मेरठ के डिप्टी जेलर नरेंद्र की हत्या कर दी गई, अगस्त 2003 में जिला कारागार आजमगढ़ के जेलर दीपसागर की गोली मारकर हत्या कर दी गई, मई 2003 में बंदी रक्षक रामा नारायण की हत्या कर दी गई, फरवरी 2011 में मेरठ कारागार के चिकित्सक डॉक्टर हरनाम दिन की हत्या, फरवरी 2001 में जिला कारागार ललितपुर के बंदी रक्षक विष्णु सिंह की हत्या, फरवरी 1999 में लखनऊ में जेल अधीक्षक आरके तिवारी की गोली मारकर हत्या, अक्टूबर 1997 लखनऊ के जेलर अशोक गौतम की जेल परिसर में गोली मारकर हत्या, 14 जून 2013 को एसएसओ राजेंद्र प्रसाद की गोली मारकर हत्या कर दी गई, 2 मार्च 2013 को प्रतापगढ़ जिले में सीओ जियाउल हक की बेरहमी से हत्या, 28 मई 2013 को चित्रकूट में दरोगा की गोली मारकर हत्या, मथुरा में सिपाही सतीश की हत्या, बरेली में सिपाही अनिरुद्ध की हत्या, बागपत जिले में चौकी में घुसकर सिपाही विक्रम भाटी की हत्या, फिरोजाबाद जिले में आगरा कानपुर हाईवे पर सिपाही रामाकांत की गोली मारकर हत्या, गाजियाबाद में एसपी सिटी यहां तैनात सिपाही कृष्ण पाल की बड़ौत में गोली मारकर हत्या, बाराबंकी जिले के सतरिख थाना क्षेत्र में सिपाही कमल सिंह की हत्या व लखीमपुर खीरी में विक्रम प्रताप सिंह की हत्या। यह तो बानगी भर है, इससे पहले भी कई पुलिसकर्मी बदमाशों के निशाने पर चढ़ चुके हैं।