भारतीय लोकतंत्र में EVM एक खूंखार विलेन
भारतीय लोकतंत्र में EVM की भूमिका एक खूंखार विलेन की बन गई है। प्रत्येक चुनाव के उपरांत इस पर आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है। जहां सत्ता पक्ष इसे अभेद्य बताने का प्रयास करती है वहीं विपक्ष एक सुर में हैक होने की आशंका व्यक्त करती है। समस्त विपक्ष मानता है कि चुनाव आयोग और भाजपा की मिलीभगत से सब कुछ हो रहा है। विपक्ष के आरोप को सीधे खारिज भी नही किया जा सकता है। चुनाव आयोग विपक्ष के दो आरोपों का अभी तक जवाब नहीं दे पाया है। पहला BEL और ECIL द्वारा बेचे गये और चुनाव आयोग द्वारा खरीदे गए मशीनों में 2 लाख का अंतर है, आखिर यह 2 लाख मशीनें कहाँ गई, दूसरा 2019 के चुनाव में कुल पड़े मत और गणना हुए मतों में कुल 58.65 लाख मतों का अंतर क्यों है जो कि लोकसभा की 105 सीटों के परिणाम प्रभावित करते हैं।
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का स्पष्ट मत है कि EVM से पारदर्शी चुनाव संभव नही है। पार्टी EVM से वर्तमान में होने वाले चुनावों का बहिष्कार करती है और सभी विपक्षी दलों का आह्वान करती है वह भी चुनाव का बहिष्कार करें। साथ ही साथ चुनाव आयोग से भी अनुरोध करती है कि चुनाव कराने का अभिनय क्यों आप बगैर चुनाव के ही भाजपा द्वारा निर्धारित प्रत्याशियों का निर्वाचित होने का प्रमाण पत्र निर्गत कर दें।