जीरो बजट खेती कार्यशाला एवं रबी उत्पादकता गोष्ठी का आयोजन


उन्नाव 


आज कृषि सूचना तंत्र के सुदृढ़ीकरण एवं कृषक जागरूकता कार्यक्रम के अन्तर्गत रबी उत्पादकता गोष्ठी एवं जीरो बजट खेती कार्यशाला का आयोजन विकास भवन सभागार, उन्नाव में किया गया, कार्यशाला का शुभारम्भ जिलाधिकारी श्री देवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने दीप प्रज्जवलित कर किया। उन्होंने किसानों को सम्बोधित करते हुये कहा कि किसान भाई किसान के्रडिट कार्ड अवश्य बनवा लें। कृषि से आमदनी को बढ़ाने के लिये सहफसली खेती एवं कृषि के साथ पशुपालन, बकरी पालन, बागवानी, मत्स्य पालन आदि व्यवसाय भी करें। उन्होंने जीरो बजट खेती के सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा करते हुये कहा कि किसान अपनी भूमि के हिस्से में जीरो बजट खेती के अन्तर्गत रसायन, उर्वरक का प्रयोग किये बगैर गोवंश के गोबर, मूत्र से बनायी खाद का प्रयोग कर प्राकृतिक तरीके से खेती करें, इससे उन्हंे अच्छी गुणवत्ता का अनाज प्राप्त होगा, जो कि मानव स्वंय के साथ-साथ पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी लाभकारी होगा।
उप कृषि निदेशक डा0 नन्द किशोर ने किसानों को मंगलवार और शुक्रवार को बैंकों में आयोजित के0सी0सी0 कैम्प में जाकर अपना किसान के्रडिट कार्ड बनवाने की सलाह दी। उन्होंने बताया धान, मक्का एवं सभी फसलों का समर्थन मूल्य घोषित हो गया है। उन्होंने बताया कि जनपद में गेंहू में उत्पादकता 39.65 कु0 प्रति हे0 का लक्ष्य रखा गया है। रबी वर्ष 2019-20 के लिये 279118 हे0 फसल आच्छादन का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें मुख्य फसल गेंहू का क्षेत्रफल 243214 हे0 एवं उत्पादकता का लक्ष्य 39.65 कु0 प्रति हे0 है, रबी की दूसरी मुख्य फसल राई/सरसों 16993 हे0 और चना के लिये 2973 हे0 का फसल आच्छादन का लक्ष्य है। कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने शून्य लागत कृषि के बारे में विस्तृत प्रस्तुतीकरण किया, उन्होंने बताया कि कोई भी संसाधन बीज, खाद, कीटनाशक, आदि बाजार से न लेकर इसका निर्माण अपने घर या खेत में करके बाजारी लागत को शून्य किया जा सकता है। किसान बाजार से कुछ खरीदेगा नही ंतो कर्ज भी नहीं लेगा। शून्य लागत खेती का आधार प्रकृति में सभी जीव एवं वनस्पतियों के भोजन की एक स्वावलम्बी व्यवस्था है, जिसका प्रमाण है बिना किसी मानवीय सहायता के जंगल में हरे-भरे पेड़ व उनके साथ रहने वाले लाखों जीव-जन्तु। इस प्राकृतिक व्यवस्था के अनुरूप खेती करना है, एक देसी गाय से 10 हे0 से 30 हे0 तक खेती की जा सकती है, देसी गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु पाये जाते है। गाय के गोबर में गुड़, घी, दही, दूध आदि पदार्थ डालकर किण्वन से सूक्ष्म जीवाणु बढ़ाकर जीवा अमृत पंचगव्य, बीजा अमृत आदि तैयार किया जा सकता है। इस पद्धति में कीट नियंत्रकों की आवश्यकता नहीं पड़ती है क्योंकि कीट आते ही नहीं, फिर भी आवश्यकता पड़ने पर गोबर, गऊमूत्र, छांछ एंव वनस्पतियों द्वारा तैयार नीमास़्त्र, ब्रहमास्त्र, अग्निास्त्र, फंफूदनाशक दसपर्णी अर्क आदि बनाया जाता है प्राकृतिक कृषि में देसी बीज ही प्रयोग करें, हायब्रिड बीजो से अच्छे परिणाम नहीं मिलेंगें। प्राकृतिक कृषि में भारतीय नस्ल का देशी गोवंश ही प्रयोग करें। जीवाणुयुक्त मिट्टी वट् वृक्ष, पीपल के नीचे की मिट्टी लें तथा पौधों और फसलों की पंक्ति की दिशा उत्तर से दक्षिण हो। दलहनी फसलों की खेती करनी चाहिये। गाय के सींघ में दुधारू गाय का ताजा गोबर भरकर उसकी खाद् भी बनायी जा सकती है।
कृषि, उद्यान, सिंचाई, नलकूप, सहकारिता, बैंक, पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने शासन की विभागीय योजनाओं के बारे में जानकारी दीं। किसानों द्वारा उठाये गये प्रश्नों का उत्तर दिया। जिला कृषि अधिकारी ने अवगत कराया कि जनपद में रबी के लिये पर्याप्त मात्रा में बीज व उर्वरक की व्यवस्था कर ली गयी है। किसान भाई राजकीय कृषि बीज भण्डार पर जाकर सभी प्रकार के निवेश प्राप्त कर सकते है। जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने फसल सुरक्षा प्रणाली के बारे में और खरीफ की फसलों के कीड़ांे आदि से बचाव की जानकारी दी।
कार्यशाला में जिलाधिकारी श्री देवेन्द्र कुमार पाण्डेय, जिला कृषि अधिकारी, जिला कृषि रक्षा अधिकारी, जिला उद्यान अधिकारी, अधिशाषी अभियन्ता सिंचाई, अधिशाषी अभियन्ता लघु सिंचाई, मुख्य पशुचिकित्साधिकारी, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 राजेश कुमार, कृषि विश्वविद्यालय के उद्यान विभाग के विभागाध्यक्ष डा0 बी0के0 त्रिपाठी, डा0 जितेन्द्र सिंह एवं कृषि विज्ञान केन्द्र धौरा के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा0 रतना सहाय एवं डा0 रमेश चन्द्र मौर्या, अग्रणी जिला प्रबन्धक, उन्नाव उपस्थित रहे।


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