राजनीति पर कटाक्ष करती हास्य नौटंकी ‘‘गंदर्भ महाराज ऊर्फ ढेंचू-ढेंचू’’ का मंचन

लखनऊ।

सत्य समर्पण व संस्कृत मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से अमित दीक्षित के लिखे व निर्देशित नौटंकी ''गंदर्भ महाराज ऊर्फ ढेंचू-ढेंचू'' का मचंन रविवार को संत गाडगे प्रेक्षागृह गोमतीनगर में किया गया। मुख्य अतिथि कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक व विशिष्ट अतिथि जफर अब्बास नकवी, मुख्य सुरक्षा अधिकारी राज्यपाल भवन ने दीप प्रज्वलन के उपरांत नौटंकी की शुरुआत नट नटी द्वारा चिर परिचित अंदाज में दोहा, चौबोला, बहरे तबील दौड़ आदि छंदों से शुरुआत हुई।
फिर जॉन जॉनी जनार्दन नामक तीन चरित्र नाटक में आते हैं, राह चल रही गोपियों को छेड़ते हैं और इनका बचाव करने के लिए बीच में मौसी आती हैं जो इन तीनों को सबक सिखाती है, फिर नौटंकी की असली शुरुआत होती है। कल्लू कुमार नामक एक गरीब परिवार के सदस्य से जो अपनी आप बीती सबको सुनाता है और अपनी गरीबी का हाल सुनाता है तभी उसको देव गुरु बृहस्पति मिलते हैं जो स्वर्ग लोक से धरती पर विचरण करने के लिए अवतरित हुए हैं। गुरु बृहस्पति कल्लू को अपने साथ स्वर्ग ले जाते हैं उसको अपना शिष्य बनाते हैं स्वर्ग पहुंचकर मस्त मौला कल्लू देवताओं की तुलना नेताओं से करके राजनीति पर कटाक्ष करता है और स्वर्ग नर्क की तुलना करता है। स्वर्ग में देवराज इंद्र कल्लू की बातों और विचारों को सुनकर घबरा जाते हैं। देवराज इंद्र कल्लू का स्वागत करते हैं और उनके मनोरंजन हेतु अप्सरा रंभा का नृत्य करवाते हैं और कल्लू की सभी बातों को मानते हैं। इसी बीच रंभा केंद्रित के दौरान गंधर्व चित्रसेन की नियत डोलती है और वह अप्सरा रंभा का हाथ पकड़ लेता है इंद्रजीत इस कुकृत्य से नाराज होकर उसे शाप देते हैं कि वह पृथ्वी लोक में गधा बनकर घूमे उनके अत्यंत क्षमा याचना के बाद इंद्रदेव महाराज सत्य वर्मा की बेटी से विवाह करने के उपरांत फिर से गधे से पुनाः गंधर्व चित्रसेन बन जाने का वरदान देते हैं। इधर कल्लू स्वर्ग से वापस पृथ्वी लोक पर आकर अपनी पत्नी गंगी से स्वर्ग का हाल बताता है। सर वही उसको एक और गधा घूमता दिखाई देता है असल में यह गधा ही चित्रसेन है। कल्लू उसे भी अपने पास रख लेता है उधर महल में राजा शर्त का बीड़ा रख पाते हैं कि जो भी एक रात में महल की देवरी से गरीबों की बस्ती तक पुल बनवा आएगा। राजकुमारी का विवाह उसी के साथ होगा इंद्र के आदेश से गधा रूपी गंधर्व कल्लू को बीड़ा उठाकर लाने के लिए बोलता है वह शर्त के मुताबिक एक ही रात में पुल बनवा कर राजकुमारी से शादी करता है और वापस गधे से चित्रसेन बन जाता है। मगर अपने पिता स्वरूप मालिक कल्लू को भूल जाता है और उसको भरे महल में अपमानित करता है इंद्र जी के समझाने पर वह कल्लू को वापस बुलाता है मगर कल्लू एक बार फिर गरीब मजदूरों के साथ दुर्व्यवहार की समाज की कली खोल देता है। समाज में गरीब अमीर एकता का संदेश देता है और समाज को प्रेरणा देता है कोई छोटा बड़ा नहीं है हम सब एक हैं नाटक एक संदेश के साथ अपने अंतिम पड़ाव पर होता है।


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