राष्ट्रीय चेतना के प्रमुख कवि हैं दिनकर : सदानन्द प्रसाद

लखनऊ।


उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति समारोह का आयोजन 23 सितम्बर को यशपाल सभागार में किया गया। डॉ0 सदानन्द प्रसाद गुप्त, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ0 शंभु नाथ, पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान आमंत्रित थे।
दीप प्रज्वलन, माँ सरस्वती की प्रतिमा एवं राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के चित्र पर पुष्पांजलि के उपरान्त प्रारम्भ हुए कार्यक्रम में वाणी वन्दना की प्रस्तुति आराधना संगीत संस्थान द्वारा की गयी। मंचासीन अतिथियों का उत्तरीय द्वारा स्वागत डॉ0 सदानन्द प्रसाद गुप्त, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने किया।
मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित डॉ0 शंभु नाथ, पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान कहा-आज विश्व की निगाहें हमारे भारतवर्ष पर है। दिनकर की कविता 'आज कलम उनकी जय बोल' कविता ने देश की आजादी व स्वतंत्रता आन्दोलन को गतिशीलता प्रदान की। दिनकर युगधर्मी कवि हैं। दिनकर ने बहुत अच्छी रोमानी कविताएँ भी लिखीं। उनकी कविताएँ आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत हैं। दिनकर की पहचान 'रेणुका' रचना से मिली। वे कुशल सम्पादक थे। 'कुरुक्षेत्र' उनकी अमर रचना है। दिनकर पर मार्क्स का प्रभाव था। उनकी कविताओं में दीन-दुखियों का दर्द दिखायी पड़ता है। 'बापू' रचना उन्होंने गांधीजी से प्रभावित होकर लिखी। दिनकर की राष्ट्रीय कविताओं ने युवाओं में स्वतंत्रता के प्रति ऊर्जा भरती रहीं। वे सुभाषचन्द्र बोस से भी प्रभावित रहे। 'हारे को हरिराम' रचना में उनका अध्यात्मिक भाव दिखायी देता है। दिनकर राष्ट्रीयता के कवि हैं। दिनकर की रचना 'रश्मि रथी' में कर्ण के बारे में वर्णन किया गया है।
अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ0 सदानन्दप्रसाद गुप्त, मा0 कार्यकारी अध्यक्ष, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने कहा - राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर युगधर्मी कवि हैं। दिनकर उत्तरछायावादी कवि है। दिनकर की कविताएँ ठोस धरातल की कविताएँ हैं। दिनकर की कविताएँ यथार्थ चेतना से परिपूर्ण हैं। दिनकर भारतीय चेतना के कवि है। दिनकर की राष्ट्रीय चेतना में सशक्त संघर्ष की आवाज सुनायी पड़ती है। उनका मानना था हमारे कवियों को राष्ट्रीय चेतना तक ही ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। दिनकर की कविताओं में संस्कृति परिलक्षित होती है। भारतीय संस्कृति एक अखण्ड प्रवाह वाली संस्कृति है। दिनकर राष्ट्रीय चेतना के प्रमुख कवि के रूप में हमारे सामने आते हैं।  
इस अवसर पर आराधना संगीत संस्थान की ओर से राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी की 'मेरे नगपति मेरे विशाल', कंचन थाल सजा फूलों से', 'बहुत दिनों पर मिले आज तुम' तथा 'कलम आज उनकी जय बोल' शीर्षक कविताओं की संगीतमयी प्रस्तुति की गयी, जिनमें मुख्य स्वर डॉ0 ऋचा चतुर्वेदी का था। सुबोध कुमार दुबे के निर्देशन में तबले पर संगत दिनेश पाण्डेय तथा सह वाद्य में मोहन देशमुख ने सहयोग किया।  
कार्यक्रम का संचालन एवं आभार डॉ0 अमिता दुबे, सम्पादक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थान ने किया।


 


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