भारत विदेश नीति के कारण वैश्विक शक्ति बनेगा।
भारतीय गणराज्य की जो स्थिति स्वतंत्रता के बाद 1947 में थी, वैसी स्थिति तथा परिस्थिति ना तो 20 वीं सदी में थी, और ना ही आज ही है। वैसे भी किसी देश की विदेश नीति उसके राष्ट्रीय हितों के अनुरूप दूसरे अन्य देशों के साथ आर्थिक राजनीतिक सामाजिक तथा सैनिक संबंधों के पालन में की जाने वाली नीति का संपूर्ण समावेश होती है।समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय स्थिति एवं परिस्थिति के अनुरूप हर देश अपनी विदेश नीति में परिवर्तन भी करते जाते हैं। स्वतंत्रता के बाद जवाहरलाल नेहरू बहुत ही महत्वपूर्ण विदेश नीति के प्रेरणा स्रोत थेl उन्हें विदेश नीति का सूत्रधार माना जाता है। प्रधानमंत्री के साथ साथ उन्होंने विदेश मंत्री की भूमिका भी निभाई थी। और वैश्विक निशस्त्रीकरण गुटनिरपेक्षता और पंचशील के सिद्धांतों की नींव रखी थी, उन सिद्धांतों के चलते भारत में तथा तटस्थता सिद्धांतों को अपनाकर युद्ध और विवाद से भारत को दूर रखा।जवाहरलाल जी की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने उन्होंने विदेश के कार्यों के लिए एक अलग मंत्री रखा भारत के प्रथम विदेश मंत्री डॉ स्वर्ण सिंह बने। 14 माह के कार्यकाल में लाल बहादुर शास्त्