नालियों में नहीं बल्कि मानव की नाड़ियों में बहना चाहिए मानव का रक्त

प्रदीप कुमार सिंह
भारत में राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान दिवस हर साल 1 अक्टूबर को व्यक्ति के जीवन में रक्त की आवश्यकता और महत्व को साझा करने के लिये मनाया जाता है। ये पहली बार साल 1975 में 1 अक्टूबर को इंडियन सोसायटी ऑफ ब्लड ट्रासफ्यूजन एण्ड इम्यूनोहैमेटोलाजी द्वारा मनाया गया। इंडियन सोसायटी ऑफ ब्लड ट्रासफ्यूजन एण्ड इम्यूनोहैमेटोलाजी की स्थापना 22 अक्टूबर 1971 में डा. जे.जी.जौली और के. स्वरूप क्रिसेन के नेतृत्व में हुई।
संत निरंकारी मिशन के तीसरे गुरू सतगुरू बाबा गुरूवचन सिंह के शहादत दिवस को याद कर मानव एकता दिवस मनाया जाता है। 24 अप्रैल 1980 को बाबा जी की हत्या गोली मारकर कर दी गई थी। बाबा गुरूवचन सिंह के शहादत दिवस पर बाबा हरदेव सिंह ने रक्तदान शिविर का आरंभ करते हुए कहा था कि इंसान का रक्त नालियों में नहीं बल्कि नाड़ियों में बहना चाहिए।
मेरी साहसी बेटी 35 वर्षीय शान्ति पाल 'प्रीति' का ब्लड कैंसर से देहान्त 20 मार्च 2018 को हो गया था उस बहादुर बेटी को याद करते हुए हम विश्व के सभी कैंसर पीड़ितों के कल्याण की ईश्वर से सदैव प्रार्थना करते हैं! बेटी शान्ति पाल 'प्रीति' तुम हम सभी की समाज सेवा की सबसे बड़ी प्रेरणा हो तथा भविष्य में सदा-सदा रहोगी। जहां तक बेटी का कैंसर रोग से पीड़ित होने का कारण उसकी रोग प्रतिशोधक क्षमता का कमजोर होना था। जिन बच्चों को जन्म के पूर्व तथा बाद में पोषक तत्वों की पूर्ति ठीक से नहीं होती है ऐसे बच्चों की रोगों से लड़ने की क्षमता कमजोर रहती है। अर्थात वे कुपोषण का शिकार हो जाते है। युवा अवस्था में मेरा जीवन आर्थिक रूप से काफी संघर्षपूर्ण रहने के कारण मैं बेटी का जन्म के समय उसका सही तरह से पोषण नहीं कर पाया था। अब मेरा संकल्प है कि भविष्य में संसार के किसी भी व्यक्ति को तथा धरती की संतानों को अपना जीवन आर्थिक कारणों से न खोना पड़े।
बेटी का पूरे एक वर्ष पी0जी0आई0, लखनऊ में इलाज चला। वह पूरे एक साल साहस के साथ कैंसर से लड़ती रही लेकिन वह बहादुरी से लड़ते हुए सदैव के लिए हमारे दिलां में अमर हो गयी। जिस प्रकार एक बहादुर सैनिक सीमा पर लड़ते हुए शहीद हो जाता है उसी प्रकार मेरी बेटी कलम की सिपाही की तरह विश्व एकता तथा विश्व शान्ति की स्थापना के लिए युद्धरत थी। उस बहादुर बेटी को मैंने 365 दिन रोज मौत की तरफ जाते एक बेबस पिता के रूप में देखा था।
कैंसर ग्रस्त बेटी को लगभग 4-5 दिनों के बाद खून चढ़ाने की आवश्यकता होती थी। विभिन्न धर्मों तथा जाति के परिचित-अपरिचित लोगों ने अपना खून देकर बेटी की जिन्दगी की डोर को टूटने से रोकने का भरसक प्रयत्न किया था। इस बीच उसकी दोनों आंखों की रोशनी चली गयी थी। उसके बाद दोनों पैरों से चलना बंद हो गया। कमजोरी के कारण उठना-बैठने से वह लाचार हो गयी। लेकिन उसने अपनी पीड़ा को कभी नहीं व्यक्त करके हमें ज्यादा दुखी न करने का हिम्मत के साथ प्रयास किया। मैंने उसकी नेत्रहीनता, दिव्यांगता तथा कैंसरग्रस्तता को हर पल महसूस किया। आज भी मैं उन रक्तदाताओं का ऋणी हूं जिन्होंने अपने-अपने शरीर का रक्त दान किया। हमारा परिवार उन रक्तदाताओं का सदैव ऋणी रहेगा।  
वर्तमान में हमारे देश में करोड़ों युवक-युवतियां बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं। राष्ट्रीय सरकारों के पास इतनी नौकरियाँ तथा व्यवसाय नहीं है कि वह सभी को व्यवसाय या नौकरियां उपलब्ध करा सके। वैश्विक मंदी, मशीनीकरण, रोबोट तथा कम्प्यूटर के युग में लोगों के समक्ष भयंकर स्थिति बन गयी हैं। गरीबी से बेबस किसान आत्महत्या कर रहे हैं। क्योंकि खेती घटे का सौदा बन गया है। गलत कानूनों के कारण एक तरह कुछ गिनती के लोगों में सिमटती आसमान छूती अमीरी का दृश्य देखने को मिल रहा है तो दूसरी ओर भयंकर गरीबी की मार झेलते अधिकांश वोटर हैं। विश्व की यह भयंकर स्थिति वर्ल्ड लीडर्स से युगानुकूल विश्व का संविधान, लोकतंत्र को वैश्विक स्वरूप तथा विश्व का प्रभावशाली न्यायालय शीघ्र बनाने की मांग कर रही है।  
भारत सरकार ने विशेषकर गरीब लोगों के लिए आयुष्मान स्वास्थ्य योजना, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की राष्ट्रीय आरोग्य निधि का गठन किया है। इसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले ऐसे रोगियों को वित्तीय सहायता देना है जो जानलेवा बीमारियों से पीड़ित हैं। ताकि वे सरकारी तथा निजी अस्पतालों में बेहतर इलाजों की सुविधा का निःशुल्क लाभ उठा सकें। लेकिन उन वोटरों का क्या होगा जो सरकार के अनुसार गरीबी रेखा के नीचे नहीं आते हैं। जब वोटर द्वारा चुने एमएलए तथा एमपी को 5 साल बने रहने पर पेन्शन आदि सभी सुविधायें मिल सकती हैं तो प्रत्येक वोटर को वोटरशिप अधिकार का कानून बनाकर उसके खाते में नगद धनराशि क्यों नहीं पहुंचायी जा सकती?
विश्व भर की सरकारों को वोटर तथा नकद रूपये के बीच में रूकावट नहीं बनना चाहिए। जनता के खजाने का पैसा वोटरशिप अधिकार कानून बनाकर उसे जनता के हाथ सौंपना चाहिए। सरकारों के पास वैसे ही काम का काफी बोझ है। वोटरशिप अधिकार कानून बनाकर वोटर को उसकी जिम्मेदारी निभाने का अवसर देना चाहिए। आधार कार्ड, जन धन खाता तथा एटीएम के युग में अब यह सम्भव हो गया। विभिन्न योजनाओं के बोझ से लदे सरकारी अधिकारियों तथा कर्मचारियां का बोझ भी वोटरशिप से हल्का हो जायेगा।
अब यह समझना चाहिए कि वोटर इतना परिपक्व हो गया है कि वह वोटरशिप अधिकार का अपना पैसा समझदारी से खर्च कर सकता है। अब सरकारों को भी वोटर के प्रति संवेदना, दूरदृष्टि तथा समय की सच्चाई को पहचाने की समझदारी दिखाना चाहिए। पैसे का इतिहास देखे तो आजादी के पहले देश का पैसा लंदन से खर्च होता था। फिर आजादी मिलने के बाद दिल्ली से, फिर राज्यों की राजधानी से, फिर जिलाधिकारी से, फिर ब्लाकों से तथा अभी गांव के प्रधान तक पैसा पहुंच रहा है। बस एक धक्का लगाकर उसे प्रत्येक वोटर तथा उसके परिवार तक पैसा पहुंचाने का श्रेय लेने का सुअवसर भारत की सरकार के पास है।    
रक्तदान के दिवस के अवसर पर मैं आपको एक ऐसी महान आत्मा से परिचित कराना चाहूंगा जिसे अब विश्वात्मा के नाम से जाना जाता है। 51 वर्षीय महान विचारक वोटरशिप अधिकार के जनक विशात्मा (जिनका 50 वर्ष तक की आयु तक नाम श्री भरत गांधी था) का कहना है कि प्रत्येक इंसान को 25 वर्ष तक परिवार के लिए, उसके बाद 50 वर्ष के लिए देश के लिए तथा उसके बाद 75 वर्ष तक विश्व के लिए तथा उसके बाद अन्तिम सांस तक पृथ्वी के समस्त प्राणी मात्र के लिए जीना चाहिए।
विशात्मा ने अपना 25 वर्ष के बाद 50 वर्ष तक का जीवन राष्ट्र पुत्र की तरह देश के लिए जीआ था। इसलिए इन्होंने अपनी जाति का नाम हटाकर अपने नाम के साथ राष्ट्र के पिता महात्मा गांधी का सरनेम गांधी लगाया था। अब वह सारे विश्व की मानव जाति को गरीबी, बीमारी, कुपोषण, बेरोजगारी, युद्धों, आतंकवाद, शस्त्रों की होड़, गलत कानूनों, यूएन के पांच वीटोपॉवर, वीजा कानून आदि से मुक्त करने के लिए प्रत्येक क्षण जी रहे हैं इस कारण से उन्होंने अपना नाम बदलकर विश्वात्मा कर लिया है। अब वह विश्वात्मा के रूप में जाने जाते हैं। विश्वात्मा के मायने जिसके विशाल हृदय की संवेदना भारत सहित विश्व के प्रत्येक व्यक्ति के दुख-दर्द को महसूस करती हो। अब आपकी राष्ट्रीयता ने वसुधैव कुटुम्बकम् का स्वरूप धारण कर लिया है।
विशात्मा अपने वैश्विक चिन्तन से 21वीं सदी में जी रही मानव जाति के लिए एक नवीन जीवन शैली, एक नई वैश्विक लोकतांत्रिक व्यवस्था, विश्व का एक नया संविधान, राष्ट्रीयता तथा आर्थिक आजादी को उच्चतम ऊंचाइयों तक ले जाना चाहते हैं। ऐसी महान हस्ती को हम सबकी ओर से भारत सरकार द्वारा भारत रत्न, संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विशात्मा के जन्म दिवस को वोटरशिप अधिकार दिवस के रूप में मानने की घोषणा तथा नोबेल शान्ति पुरस्कार देकर सम्मानित करने की मांग करनी चाहिए। ताकि सारा विश्व इस विशात्मा के युगानुकूल चिन्तन, यूट्यूब पर उनके व्याख्यानों के वीडियो देखकर तथा आर्थिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक क्रांतिकारी विचारों को पढ़कर लाभान्वित हो सके।    
संयुक्त राष्ट्र संघ की वैश्विक स्वास्थ्य इकाई विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने वर्ष 1997 में 100 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान नीति की नींव डाली और विश्व के सभी देशों में स्वैच्छिक रक्तदान को बढ़ावा देने का संकल्प दोहराया। लोगों को रक्तदान के अभियान में शामिल करने के लिए वर्ष 2004 से 14 जून को विश्व रक्तदान दिवस के तौर पर मनाने का फैसला किया गया। रक्तदान का उद्देश्य यह रखा गया कि सुरक्षित रक्त उत्पादों की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाना और रक्तदाताओं के सुरक्षित जीवन रक्षक रक्त स्वैच्छिक रूप से दान करने के लिए आभार व्यक्त करना है।  
वर्ष 1930 में शरीर विज्ञान में सराहनीय कार्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित विख्यात आस्ट्रियाई जीव विज्ञानी और भौतिकीविद् कार्ल लेण्डस्टाइनर का जन्म- 14 जून 1868 में हुआ था। उनके जन्मदिवस 14 जून को विश्व रक्तदान दिवस मनाया जाता है। आधुनिक ब्लड ट्रांसफ्यूजन के पितामह कहे जाने वाले लेण्डस्टाइनर ने रक्त का अलग-अलग रक्त समूहों ए, बी, ओ में वर्गीकरण कर चिकित्सा विज्ञान में अह्म योगदान दिया था।
रक्तदान को महादान कहा गया है। बिना किसी आर्थिक लाभ की इच्छा से रक्तदान करने वाले रक्तदाता अत्यधिक सम्मान के पात्र हैं। इन्हें बढ़ावा देकर एचआईवी, हैपेटाइटिस-बी, हैपेटाइटिस-सी व सिफलिस के मामलों में बड़ी मदद मिल सकती है। हमारे देश में बड़े आपरेशनों में 27 प्रतिशत दुर्घटना के कारण होने वाली सर्जरी, 13.5 प्रतिशत कैंसर से जुड़े उपचार और 4.5 प्रतिशत गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताओं में एनीमिया, थैलेसीमिया और हेमोफीलिया के पीडितों को भी नियमित खून चढ़ाए जाने की आवश्यकता होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का उद्देश्य 2020 तक पूरे विश्व में स्वैच्छिक और अवैतनिक रक्त दाताओं द्वारा पर्याप्त रक्त की आपूर्ति प्राप्त करना है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अन्तर्गत 130 करोड़ जनसंख्या वाले हमारे देश भारत में साल में एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत होती है लेकिन उपलब्ध 70-75 लाख यूनिट ही एकत्रित हो पाता है। यानी करीब 25-30 लाख यूनिट रक्त के अभाव में हर साल सैंकड़ों मरीज दम तोड़ देते हैं। एक आंकड़े के अनुसार भारत में हर दिन करीब 38,000 लोगों को रक्त की जरूरत पड़ती है। वहीं करीब 12,000 लोगों की खून की कमी के कारण जान चली जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार केवल एक प्रतिशत और अधिक रक्तदाताओं का रक्तदान के लिए आगे आना उनके देश की रक्त की आवश्यकता की पूर्ति कर देती है।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में अभी भी अधिकांश लोग यह समझते हैं कि रक्तदान से शरीर कमजोर हो जाता है और उस रक्त की भरपाई होने में महिनों लग जाते हैं। यहाँ भ्रम इस हद तक फैला हुआ है कि लोग रक्तदान का नाम सुनकर ही घबरा जाते हैं। ऐसी गलत सोच होने से क्या इससे पर्याप्त मात्रा में रक्त की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है?

चिकित्सकों के अनुसार रक्तदान से मनुष्य के शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव निम्न प्रकार हैं :-

1. मनुष्य के शरीर में रक्त बनने की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है और रक्तदान से कोई भी नुकसान नहीं होता बल्कि यह तो बहुत ही कल्याणकारी कार्य है।
2. रक्तदान के सम्बन्ध में डाक्टरों द्वारा कहा जाता है कि कोई भी स्वस्थ्य व्यक्ति जिसकी उम्र 16 से 60 साल के बीच हो, जो 45 किलोग्राम से अधिक वजन का हो और जिसे कोई भी बड़ी बीमारी न हो जैसे एचआईवी, हेपाटिटिस बी या हेपाटिटिस वह रक्तदान कर सकता है।
3. रक्तदाता से एक बार में 350 एमएल माने एक यूनिट रक्त लिया जाता है, उसकी पूर्ति शरीर में चौबीस घण्टे के अन्दर हो जाती है और गुणवत्ता की पूर्ति 21 दिनों के भीतर हो जाती है। दूसरे जो व्यक्ति नियमित रक्तदान करते हैं उन्हें हृदय सम्बन्धी बीमारियां कम परेशान करती हैं।
4. शाकाहारी तथा मांसाहारी व्यक्ति रक्तदान कर सकते हैं। खून देने पर तकलीफ नहीं होती है सुई की हल्की चुभन के अलावा कोई दर्द नहीं होता। सभी स्वास्थ्य केंद्र खून लेने के मानक तरीके अपनाते हैं। लगभग 30 मिनट में खून देने की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।
5. रक्तदान से दो-तीन घंटे पहले पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं व भरपेट भोजन करें। इससे खून में शुगर की मात्रा स्थिर रहती है।
6. रक्त की संरचना ऐसी है कि उसमें समाहित लाल रक्त कोशिकाएँ तीन माह में (120 दिन) स्वयं ही मर जाती हैं, लिहाजा प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति तीन माह में एक बार रक्तदान कर सकता है। जानकारों के मुताबिक आधा लीटर रक्त तीन लोगों की जान बचा सकता है।
7. चिकित्सकों के मुताबिक रक्त का लम्बे समय तक भण्डारण नहीं किया जा सकता है।
8. रक्तदान करने वाले को लगवे की बीमारी नहीं होती है शरीर में ब्लाकेज की संभावना खत्म हो जाती है।
9. महिलायें रक्तदान नहीं कर सकती यह कहना गलत है। रक्तदान करने से खून पतला रहता है जिससे हृदय आघात में 50 प्रतिशत तक लाभ होता है। लीवर की समस्या कम हो जाती है। शरीर में आयरन की ज्यादा मात्रा है तो वह संतुलित हो जाती है। मोटे लोगों को वजन घटाने में रक्तदान सहायक होता है। रक्तदान करने से लगभग 600-700 तक कैलरी कम हो जाती है। रक्तदान करने से स्फूर्ति तथा मानसिक संतुष्टि प्राप्त होती है।
10. रक्त देने से रोगी को नया जीवन मिलता है साथ ही रक्तदाता को भी अनेक फायदे होते हैं। रक्तदान से जीवन और भी स्वस्थ हो जाता है। विषेले पदार्थ शरीर से निकल जाने से की शरीर की सफाई हो जाती है। रक्तदाता का हीमोग्लोबिन लेबिल 12.5 प्रतिशत होना चाहिए। रक्तदान के समय ब्लड प्रेशर सामान्य होना चाहिए। हमें अपना ब्लड़ गु्रप मालूम होना चाहिए। रक्तदान के बाद जूस तथा हरी-सब्जी खानी चाहिए। रक्त कोई औषधी नहीं है। इसे किसी फैक्ट्ररी में नहीं बनाया जा सकता। रक्त प्राप्त करने का एकमात्र स्रोत मनुष्य ही है। जानवर का रक्त किसी मनुष्य को नहीं चढ़ाया जा सकता। रक्तदान नई कोशिकायें बनाने में मदद करता है। शरीर में ब्लड का संचार खून पतला होने से अच्छा होता है। रक्तदान के बाद रक्त की जांच होती है इससे यदि हमें किसी प्रकार की बीमारी है तो उसका समय से पता चल जाता है।
11. रक्तदान एक हानिरहित प्रक्रिया है मानव शरीर में 4 से 5 लीटर तक रक्त होता है। रक्त की एक बूंद भी अनमोल है। स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में 900 एमएल का रक्त रिजर्व में होता है। रक्तदान के समय रिजर्व 900 एमएल में से 350 एमएल रक्त लिया जाता है। रक्त मानव शरीर में कार्य करने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो इस प्रकार हैं - 1. ऊतकों को आक्सीजन पहुँचाना। 2. पोषक तत्वों को ले जाना जैसे ग्लूकोस, अमीनो अम्ल और वसा अम्ल (रक्त में घुलना या प्लाज्मा प्रोटीन से जुड़ना जैसे- रक्त लिपिड)। 3. उत्सर्जी पदार्थों को बाहर करना जैसे- यूरिया कार्बन, डाई आक्साइड, लैक्टिक अम्ल आदि। 4. प्रतिरक्षात्मक कार्य। 5. संदेशवाहक का कार्य करना, इसके अन्तर्गत हार्मोन्स आदि के संदेश देना। 6. शरीर पी. एच. नियंत्रित करना। 7. शरीर का ताप नियंत्रित करना तथा शरीर के एक अंग से दूसरे अंग तक जल का वितरण रक्त द्वारा ही सम्पन्न होता है।
12. रक्तकण तीन प्रकार के होते हैं, लाल रक्त कणिका, श्वेत रक्त कणिका और प्लैटलैट्स। लाल रक्त कणिका श्वसन अंगों से आक्सीजन ले कर सारे शरीर में पहुंचाने का और कार्बन डाईआक्साईड को शरीर से श्वसन अंगों तक ले जाने का काम करता है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (अनिमिया) का रोग हो जाता है। शरीर में आक्सीजन की पूर्ति रूक जाने का परिणाम मृत्यु है। श्वैत रक्त कणिका हानिकारक तत्वों तथा बीमारी पैदा करने वाले जिवाणुओं से शरीर की रक्षा करते हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा खून बनाने में सहायक होते हैं।
देश में एक केंद्रीय रक्त बैंक की स्थापना की जानी चाहिए जिसके माध्यम से पूरे देश में कहीं पर भी रक्त की जरूरत को पूरा किया जा सके। इण्टरनेट के युग में हुए विकास के बाद निजी तौर पर वेबसाइट्स के माध्यम से ब्लड बैंक व स्वैच्छिक रक्तदाताओं की सूची को बनाने का कार्य आरंभ हुआ है। आजकल कई ब्लड बैंक हैं जो आनलाइन सुविधाएं भी दे रहे हैं। ये पूरी तरह सुरक्षित प्रक्रिया है। विश्व भर में रेडक्रास संस्था रक्तदान को स्वैच्छिक बनाने की दिशा में अच्छा कार्य कर रही है। विश्व की सरकारों और विभिन्न स्वयं सेवी संगठनों को ब्लड कैंप और मोबाइल कैंप लगा कर लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित करना चाहिए। देश की
अधिकांश गांव में निवास करने वाली जनता को रक्तदान की महिमा समझाई जाए ताकि वे किसी की जान बचाने की संवेदना तथा नाजुक स्थिति को समझ सकें और जब भी जरूरत हो इस पुनीत कार्य से पीछे ना हटें।
अन्त में हमारा सुझाव है कि सम्पूर्ण स्वस्थ जीवन जीने के लिए विश्व के प्रत्येक व्यक्ति को योग, आसन तथा व्यायाम को अपनी दिनचर्या में विशेष स्थान देना चाहिए। प्रातःकाल जल्दी उठकर आसपास के पार्क में जाकर भरपूर आक्सीजन लेनी चाहिए। जीवन के प्रति सदैव सकारात्मक तथा न्यायपूर्ण दृष्टिकोण रखना चाहिए। विश्वव्यापी स्वरूप धारण कर चुकी संतुलित शिक्षा (भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक तीनों तरह की शिक्षा) तथा योग दो ऐसे सशक्त माध्यम हैं जो तन से, मन से, अर्थ से तथा आत्मा से सम्पूर्ण स्वस्थ विश्व का निर्माण कर सकते हैं।


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