प्रोफेसर काजमी के सम्मान में आयोजित हुई नशिस्त
फतेहपुर।
आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी हैदराबाद के एसोसिएट प्रोफेसर एवं डायरेक्टर और जाने-माने शायर डा. सैयद महमूद काजमी के सम्मान में पूर्व विधायक स्व0 कासिम हसन के आवास में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसका संयोजन अभी हाल ही में एक लाख के अवार्ड से नवाजे गए शायर जफर इकबाल जफर ने किया।
जाने-माने अधिवक्ता मोइनुद्दीन की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी के पहले मुख्य अतिथि डाक्टर काजमी का गुलपोशी कर स्वागत किया गया। नशिस्त की शुरुआत युवा शायर शोएब सुखन ने किया- तेरे जलवों के ताबानी मुझे पढ़ने नहीं देते, मेरे फिकरे बयां को आईना करने नहीं देते। राज फतेहपुरी ने पढ़ा- हरे कृष्ण का हर एक रिश्ते का अंजाम टूट जाना है तुम अपने रिश्तो से मावरा रखना। हथगाम से आए शिवशरण बंधु हथगामी ने पढ़ा- उसके घर के दरो दीवार से मिल आते हैं, उम्र बढ़ जाती है जब यार से मिल आते हैं, जब भी बढ़ जाती है नाकाम मोहब्बत की कसके, गम में डूबे किसी गमख्वार से मिल आते हैं। हैदराबाद से आए मुख्य अतिथि सै. डाक्टर महमूद काजमी ने पढ़ा- उसे समझाएं कोई वो कहां की बात करता है, जहां पर खुद नहीं रहता वहां की बात करता है, जरा उससे कहो उसका सफर अब तक अधूरा है, जमीं देखी नहीं है आसमां की बात करता है।
कार्यक्रम के संयोजक और हाल ही में उर्दू एकेडमी द्वारा एक लाख के अवार्ड से नवाजे गए जफर इकबाल जफर ने कई मेयारी कलाम सुनाए- मेरी तस्वीर खरीदार की मोहताज नहीं, ये किसी रौनके-बाजार की मोहताज नहीं, ओढ़ कर अपना बदन खाक पे सो जाता हूं, नींद मेरी दरो- दीवार की मोहताज नहीं। कार्यक्रम के संचालक शायर कमर सिद्दीकी ने पढ़ा-क्या जाने किस अजाब में मैं दरबदर हुआ, मैं चाहता नहीं था कि ये हो मगर हुआ। असलम फतेहपुरी ने पढ़ा- अगर मौज, तूफां समुंदर न होते, तो दुनिया में पैदा शनावर न होते। अहमद निहाल ने पढ़ा-इन रास्तों से कैसे गुजर जाओगे मियां, है शहर हादसों का बिखर जाओगे मियां।
इस मौके पर साबिर भाई, शकील अहमद, दिलशाद कुरैशी, मोहम्मद अहमद नुरुल्लाह आदि अनेक लोग मौजूद रहे। आयोजक मंसूर हसन ने आभार व्यक्त किया। इस मौके पर वह कहती थी प्रोफेसर काजमी ने कहा कि शायरी पैगम्बरी का एक हिस्सा है। शायरी शायर से परिचय कराती है। आज के मुशायरों ने क्लासिकल शायरी को बर्बाद कर इसे रिपोर्टिंग शायरी में तब्दील कर दिया है। शायरी में शायर को भी नजर आना चाहिए। मालूम हो कि महान कहानीकार राजेंद्र सिंह बेदी पर पीएचडी करने वाले प्रोफेसर काजमी पूरी तरह से शारीरिक रूप से दिव्यांग हैं, लेकिन अपनी मेहनत के बल पर वे आज प्रोफेसर हैं और देश के बड़े शायरों में शुमार हैं।