देश स्तर पर तो कानून का राज है, लेकिन विश्व स्तर पर जंगल राज होने के कारण सारा विश्व युद्धों तथा आतंकवाद के कारण विनाश की ओर बढ़ रहा है!
प्रदीप कुमार सिंह, लेखक
भारत में प्रत्येक वर्ष 9 नवम्बर राष्ट्रीय कानूनी सेवा दिवस के रूप में मनाया जाता है, इस दिन देश के कई स्थानों पर कानूनी साक्षरता शिविरों और कार्यों की विविधता देखने को मिलती है। इस दिन सरकार तथा गैर सरकारी संगठन के लोग कानूनी दिवस से संबंधित कार्यों और शिविरों के आयोजन कराते हैं।
9 नवंबर का दिन कानूनी सेवा दिवस के लिये चुना गया था। सबसे पहली बार पूरे भारत में सुप्रीम कोर्ट ने भारत के लोगों के वर्गों कमजोर और गरीब समूह को सहायता प्रदान करने के लिये शुरू किया था। इसका उद्देश्य सभी नागरिकों तक कानूनी सहायता सुनिश्चित करना है तथा समाज के कमजोर वर्गों को निःशुल्क व कुशल कानूनी सहायता उपलब्ध करवाना है। इस दिवस के द्वारा समाज के वंचित व कमजोर वर्ग को कानूनी सहायता के सम्बन्ध में उनके अधिकार के बारे में जागरूक भी किया जाता है।
इस दिवस पर देश भर में लोगों को समानतापूर्वक कानूनी सेवा प्रदान करने के लिए लोक अदालतों का आयोजन किया जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न स्थानों पर कानूनी साक्षरता के लिए कैंप तथा समारोहों का आयोजन किया जाता है, इसके द्वारा कमजोर वर्ग के लिए निशुल्क कानूनी सेवा के के बारे में जागरूकता फैलाने का कार्य भी किया जाता है।
इस दिवस की शुरूआत भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 1995 में देश के कमजोर व निर्धन वर्ग को निःशुल्क कानूनी सेवा उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से की थी। इसका उद्देश्य महिलाओं, दिव्यांग जन, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा मानव तस्करी के शिकार इत्यादि विभिन्न वर्गों को निशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करना है।
दुनियाँ के दो अरब पचास करोड़ से अधिक बच्चों का और आगे जन्म लेने वाली पीढ़ियों का भविष्य दिन-प्रतिदिन असुरक्षित होता जा रहा है। विशेषतया अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, विनाशकारी हथियारों का जखीरा, तीसरे विश्व युद्ध की आशंका और एक परमाणु प्रलय के डर आदि की भयानक परिस्थितियों में संसार के बालकों का भविष्य और अधिक असुरक्षित होता जा रहा है।
महात्मा गांधी ने कहा था कि विश्व में शान्ति, सुरक्षा और मानव जाति की प्रगति के लिए स्वतंत्र देशों का एक विश्व संगठन (विश्व संसद) आवश्यक है। इसके अलावा किसी भी अन्य आधार पर आधुनिक विश्व की समस्याओं को नहीं सुलझाया जा सकता है। उन्होंने यह कहा था कि ''मैं उन रास्तों पर नहीं चलूँगा जिन रास्तों पर पहिले के महापुरूष चले थे। वरन् मैं उनसे प्रेरणा तो लूंगा किन्तु ईश्वर व उसके द्वारा निर्मित समाज की सेवा के लिए मैं स्वयं अपना रास्ता बनाऊँगा।
महात्मा गांधी ने महान पुरूषों से प्रेरणा ली। परन्तु प्रभु की और समाज की सेवा करने के लिए जीवन में उन्हांेने खुद अपना रास्ता सत्य, अहिंसा, चरखा, खादी, सत्याग्रह आदि को बनाया। जिस प्रकार महात्मा गांधी ने अपना रास्ता स्वयं चुना, उसी प्रकार प्रत्येक जिम्मेदार वोटर को संसार के अन्य महापुरूषों से प्रेरणा लेते हुए अपना रास्ता स्वयं बनाना चाहिए। और उसी के द्वारा ईश्वर की व उसके द्वारा निर्मित समाज की सेवा व्यापक रूप करनी चाहिए।
महान विचारक विक्टर हूगो ने कहा था - विश्व की समस्त सैन्य शक्ति से भी शक्तिशाली वह विचार (आइडिया) होता है जिसका कि समय आ गया हो। वसुधैव कुटुम्बकम् तथा जय जगत का वह विचार (आइडिया) है जिसका जिसका अब समय आ गया है। वसुधैव कुटुम्बकम् के विचार को सार्थक करने के लिए अब 'विश्व संसद' के गठन करने का समय आ गया है।
अमरीकी राष्ट्रपति श्री हैरी एस. ट्रू मैन ने कहा था:-''लोग इतिहास बनाते हैं ना कि इतिहास लोगों को बनाता है। जिस समाज में कोई शक्तिशाली नेतृत्व नहीं होता, उस समाज की प्रगति रूक जाती है। समाज की प्रगति तभी होती है जब कोई साहसी, दृढ़, कुशल व दूरदर्शी नेता आगे निकलकर आता है और चीजों को बदलता है।'' हमें बहुत ही साहसी, सकारात्मक, प्रगतिशील और कुशल नागरिक बनना है। वसुधैव कुटुम्बकम् की भारतीय संस्कृति के आदर्श को अमली जामा पहनाने के लिए 'विश्व संसद' का गठन कर हम आधुनिक मानव समाज के रखवाले बन सकते हैं।
हमारे देश के विश्व में सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एक बार सही कहा था कि ''बजाय कि जी-8 या जी-20 के अब हमें जी-आॅल की आवश्यकता है''। मोदी जी अन्दर हमें ऐसा जनप्रिय विश्व नेता दिखाई देता है जो विश्व का नेतृत्व और उसे एकता के सूत्र में पिरोने की योग्यता तथा क्षमता रखता है। आज संसार आप जैसे वल्र्ड लीडर के नेतृत्व की राह देख रहा है। मोदी जी में वसुधैव कुटुम्बकम की मजबूत पकड़ विद्यमान हैं।
मोदी जी के अन्दर भारत की प्राचीन सभ्यता 'वसुधैव कुटुम्बकम' एवं उसके आधार पर बने 'भारतीय संविधान एवं कानून के राज पर पूर्ण आस्था है। वह भारत की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता को परिलक्षित करने वाले विचार वसुधैव कुटुम्बकम में दृढ विश्वास रखते हैं। भारत के पुनः प्रधानमंत्री चुने जाने पर संसद के केन्द्रीय हाल में आपने झुक कर भारतीय संविधान तथा कानून के प्रति अपना सम्मान व श्रद्धा व्यक्त की थी। यह संविधान तथा कानून का राज के प्रति उनकी गहरी आस्था तथा अत्यधिक सम्मान का प्रतीक है।
महात्मा गांधी यह कहा था कि एक दिन ऐसा आयेगा जब राह भटकी मानव जाति मार्गदर्शन के लिए भारत की ओर वापिस लौटेगी। भारत के लिए विश्व एक बाजार नहीं वरन् एक परिवार है। परिवार में स्नेह और प्यार होता है। आज राह भटकी दुनियाँ विश्व गुरू भारत से वसुधैव कुटुम्बकम्, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 तथा जय जगत के सार्वभौमिक विचार की सीख ले सकती है।
देश स्तर पर तो कानून तथा संविधान का राज है लेकिन विश्व स्तर पर लोकतांत्रिक वैश्विक व्यवस्था न होने के कारण जंगल राज चल रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी यह कहते हुए अपनी पीड़ा व्यक्त की थी कि विश्व के समझदार लोगों ने वैश्विक समस्याओं का समाधान परमाणु बम के रूप में खोजा है! विश्व के दो अरब पचास करोड़ बच्चों की ओर से तथा उन बालकों की पीढ़ियों जिनका जन्म आगे होगा तथा पूरी मानव जाति की ओर से, हम सब प्रधानमंत्री श्री मोदी जी की ओर बड़े विश्वास से देख रहे हैं कि आप शीघ्र-अतिशीघ्र विश्व के नेताओं की एक मीटिंग भारत में बुलायेंगेे और 'विश्व संसद' का गठन कर मानव जाति के स्वर्णिम युग का निर्माण करेंगे।