निष्पक्ष जांच के लिए चेयरमैन और एमडी को तत्काल हटाया जाने की मांग
कर्मचारियों के देयों के भुगतान की जिम्मेदारी ले सरकार : समिति
लखनऊ।
लखनऊ।
विद्युत् कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा उप्र पॉवर सेक्टर इम्प्लॉईस ट्रस्ट में हुए अरबों रु के घोटाले की सीबीआई जांच कराने के निर्णय की प्रशंसा करते हुए मांग की है कि सारे प्रकरण की निष्पक्ष जांच के लिए घोटाले में प्रथम दृष्टया दोषी पॉवर कार्पोरेशन प्रबंधन के चेयरमैन और एमडी को तत्काल हटाया जाये और उन पर कठोर कार्यवाही की जाये। डीएचएफएल के इक़बाल मिर्ची और दाऊद इब्राहीम से संबंधों को देखते हुए संघर्ष समिति ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ मामला बताते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग की है कि इस खुलासे के बाद जिम्मेदार आला अधिकारियों को तत्काल हटाया जाये।
संघर्ष समिति ने यह भी मांग की है कि पॉवर सेक्टर इम्प्लॉईस ट्रस्ट का पुनर्गठन किया जाये और उसमे पूर्व की तरह कर्मचारियों के प्रतिनिधि को भी सम्मिलित किया जाये। समिति की मांग है कि कर्मचारियों के देयों के भुगतान की जिम्मेदारी सरकार ले।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने सवाल किया कि जब विगत 10 जुलाई को हुई एक अनाम शिकायत पर पावर कार्पोरेशन प्रबंधन ने जांच बैठाई और 29 अगस्त को जाँच रिपोर्ट मिल गई तो आज तक किसे बचाने के लिए पावर कार्पोरेशन प्रबंधन चुप्पी साढ़े बैठा था। दूसरा सवाल यह कि 17 मार्च 2017 को डीएचएफ़एल में पहला निवेश किया गया था जिसकी अनुमति सरकार के प्रेस नोट के अनुसार चेयरमैन और एमडी से नहीं ली गई किन्तु मार्च 2017 के बाद भी डीएचएफएल में निवेश कैसे और किसकी अनुमति से होते रहे। यदि यह निवेश चेयरमैन की अनुमति से हुए तो उन पर कार्यवाही क्यों नहीं की गई और यदि यह निवेश उनके संज्ञान के बिना किये गए तो भी ड्यूटी की घोर लापरवाही के चलते उन पर क्या कार्यवाही की गई। ध्यान रहे कुल निवेश 4122.70 करोड़ रु का है जिसमे 2268 करोड़ रु डूब गया है। तीसरा सवाल यह कि तीन साल से ट्रस्ट की कोई मीटिंग क्यों नहीं की गई और बिना मीटिंग के निवेश कैसे होते रहे। पावर कार्पोरेशन के चेयरमैन ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं और एमडी ट्रस्टी है तो कौन जिम्मेदार है। चौथा सवाल यह कि पावर कार्पोरेशन की जांच समिति की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि निवेश में अनियमितता की गई है और 99 प्रतिशत निवेश तीन कंपनियों में किया गया है जिसमे 85 प्रतिशत निवेश डी एच एफ एल में किया गया है। 29 अगस्त को आ गई इस रिपोर्ट पर पावर कार्पोरेशन प्रबंधन ने अब तक कार्यवाही क्यों नहीं की, आखिर किसे बचाया जा रहा था। पांचवां सवाल यह कि 25 जनवरी 2000 के मुख्यमंत्री के साथ हुए समझौते के अनुसार ट्रस्ट में कर्मचारियों का कोई प्रतिनिधि क्यों नहीं रखा गया।
विद्युत् कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारियों शैलेन्द्र दुबे, राजीव सिंह, गिरीश पांडेय समेत अन्य ने आज यहाँ जारी बयान में यह भी मांग की कि पॉवर कार्पोरेशन प्रबंधन ट्रस्ट में जमा धनराशि और उसके निवेश पर तत्काल एक श्वेतपत्र जारी करे जिससे यह पता चल सके कि कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई की धनराशि कहाँ कहाँ निवेश की गई है। उन्होंने कहा कि मार्च 2017 से दिसंबर 2018 के बीच डी एच एफ एल में 4122 करोड़ रु जमा किये गए जिसमे 2268 करोड़ रु वापस नहीं मिले हैं और डूब गए हैं। उन्होंने कहा कि घोटाले के इस दौर में मार्च 2017 से आज तक पॉवर सेक्टर इम्प्लॉईस ट्रस्ट की एक भी बैठक नहीं हुई इस आलोक में यह बहुत सुनियोजित और गंभीर घोटाला है।
संघर्ष समिति ने यह भी मांग की है कि पॉवर सेक्टर इम्प्लॉईस ट्रस्ट का पुनर्गठन किया जाये और उसमे पूर्व की तरह कर्मचारियों के प्रतिनिधि को भी सम्मिलित किया जाये। समिति की मांग है कि कर्मचारियों के देयों के भुगतान की जिम्मेदारी सरकार ले।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने सवाल किया कि जब विगत 10 जुलाई को हुई एक अनाम शिकायत पर पावर कार्पोरेशन प्रबंधन ने जांच बैठाई और 29 अगस्त को जाँच रिपोर्ट मिल गई तो आज तक किसे बचाने के लिए पावर कार्पोरेशन प्रबंधन चुप्पी साढ़े बैठा था। दूसरा सवाल यह कि 17 मार्च 2017 को डीएचएफ़एल में पहला निवेश किया गया था जिसकी अनुमति सरकार के प्रेस नोट के अनुसार चेयरमैन और एमडी से नहीं ली गई किन्तु मार्च 2017 के बाद भी डीएचएफएल में निवेश कैसे और किसकी अनुमति से होते रहे। यदि यह निवेश चेयरमैन की अनुमति से हुए तो उन पर कार्यवाही क्यों नहीं की गई और यदि यह निवेश उनके संज्ञान के बिना किये गए तो भी ड्यूटी की घोर लापरवाही के चलते उन पर क्या कार्यवाही की गई। ध्यान रहे कुल निवेश 4122.70 करोड़ रु का है जिसमे 2268 करोड़ रु डूब गया है। तीसरा सवाल यह कि तीन साल से ट्रस्ट की कोई मीटिंग क्यों नहीं की गई और बिना मीटिंग के निवेश कैसे होते रहे। पावर कार्पोरेशन के चेयरमैन ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं और एमडी ट्रस्टी है तो कौन जिम्मेदार है। चौथा सवाल यह कि पावर कार्पोरेशन की जांच समिति की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि निवेश में अनियमितता की गई है और 99 प्रतिशत निवेश तीन कंपनियों में किया गया है जिसमे 85 प्रतिशत निवेश डी एच एफ एल में किया गया है। 29 अगस्त को आ गई इस रिपोर्ट पर पावर कार्पोरेशन प्रबंधन ने अब तक कार्यवाही क्यों नहीं की, आखिर किसे बचाया जा रहा था। पांचवां सवाल यह कि 25 जनवरी 2000 के मुख्यमंत्री के साथ हुए समझौते के अनुसार ट्रस्ट में कर्मचारियों का कोई प्रतिनिधि क्यों नहीं रखा गया।
विद्युत् कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के प्रमुख पदाधिकारियों शैलेन्द्र दुबे, राजीव सिंह, गिरीश पांडेय समेत अन्य ने आज यहाँ जारी बयान में यह भी मांग की कि पॉवर कार्पोरेशन प्रबंधन ट्रस्ट में जमा धनराशि और उसके निवेश पर तत्काल एक श्वेतपत्र जारी करे जिससे यह पता चल सके कि कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई की धनराशि कहाँ कहाँ निवेश की गई है। उन्होंने कहा कि मार्च 2017 से दिसंबर 2018 के बीच डी एच एफ एल में 4122 करोड़ रु जमा किये गए जिसमे 2268 करोड़ रु वापस नहीं मिले हैं और डूब गए हैं। उन्होंने कहा कि घोटाले के इस दौर में मार्च 2017 से आज तक पॉवर सेक्टर इम्प्लॉईस ट्रस्ट की एक भी बैठक नहीं हुई इस आलोक में यह बहुत सुनियोजित और गंभीर घोटाला है।