पूर्णिमा उसी दिन जीवन में उतरती है जब हम गुरू को ही पूर्ण माँ समझे: स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश।


परमार्थ गंगा तट पर चार दिवसीय ध्यान, साधना शिविर का मंगलवार को समापन हो गया। इस अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज और विख्यात श्रीराम कथाकार मुरलीधर जी महाराज ने सहभाग किया।
जागृति मिशन द्वारा आयोजित ध्यान-साधना शिविर में स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि गुरू नानक देव जी ने संदेश दिया कि ''अव्वल अल्लाह नूर उपाया, कुदरत के सब बन्दे, एक नूर ते सब जग उपज्या, कौन भले कौन मंदे''। वे एक दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि और देशभक्त थे और उन्होने हमेशा ही परम पिता परमेश्वर एक ही है यह संदेश दिया। ''सतगुरू नानक प्रगटिया, मिटी धुंध जग चानण होआ, ज्यूँ कर सूरज निकलया, तारे छुपे अंधेर पलोआ।''
स्वामी जी ने कार्तिक पूर्णिमा का महत्व समझाते हुये कहा कि पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि आज के दिन भगवान महादेव ने असुर त्रिपुरासुर का वध किया था। वास्तव में आज का पर्व हमें अन्दर के असुर विचारों को त्याग कर श्रेष्ठता को ग्रहण का संदेश देता है। उन्होेने कहा कि पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रमा से एक सकारात्मक ऊर्जा का संचरण है यह शुभ दिन ध्यान करने के लिये उपयुक्त है। पूर्णिमा का तात्पर्य ही है पूर्णता को प्राप्त हो, अब कुछ शेष न रहा। दुःख आयेंगे जायेगे, सुख आयेंगे जायेगे पर हम पूर्ण बने रहे।
स्वामी जी ने कहा कि देवोत्थान एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक भगवान श्री नारायण चार महीने योगनिद्रा में शयन करते हैं ऐसा हमारे शास्त्रों की मान्यता है। वे चार महीने सब के लिये सम्भव नहीं हो पाता इसलिये चार दिनों के शिविर का  आयोजन किया जाता है। हमारी पूरी साधना का सार यही है कि हम कितने भी व्यस्त क्यो न रहे परन्तु जीवन मस्त बने। हम ऐसे बने कि हमें कोई और कंट्रोल न कर पाये हम स्वयं के स्वामी बने। उन्होंने कहा कि गुरू ही पूर्ण माँ। पूर्णिमा उसी दिन उतरती है जब हम जीवन में गुरू को ही पूर्ण माँ समझे, जिस दिन यह समझ में आ जाये उसी दिन पूर्णिमा है और जब हम उसे जीने लगे तब गुरूपूर्णिमा है। स्वामी जी ने कहा कि जीवन में यह जरूरी नहीं है की हमारी हस्ती क्या है परन्तु यह जरूरी है हमारी मस्ती क्या है। कहां है और वह हमेशा जिंदा रहे क्योकि जिनकी हस्ती होती है वे कई बार खुलकर हंस नहीं पाते। उन्होने कहा कि जो मस्त होते हैं वहीं जीवन में खिल सकते है और खुल सकते है आईये मस्त रहे और खुलकर जीवन जियें।
श्रीराम कथाकार श्री मुरलीधर जी महाराज ने रामायण के दिव्य प्रसंगों को सुनाकर बहुत सुन्दर संदेश दिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती और मुरलीधर जी महाराज ने सुधांशू जी महाराज को पर्यावरण का प्रतीक रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।


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