प्रवासी स्थल पर राज्यपाल

डॉ दिलीप अग्निहोत्री
भारत और मॉरीशस के संबन्ध मात्र दो मित्र देशों जैसे ही नहीं है। बल्कि उससे भी आगे दोनों देशों के बीच बंधुत्व भाव भी है। वहां की करीब सत्तर प्रतिशत आबादी भारतीय मूल की है। उन्हें इस बात का गर्व है, उन्होंने अपनी भारतीय धरोहर को सहेज कर भी रखा है।
प्रयागराज कुंभ में वहां के राष्ट्रपति सहित हजारों लोग पवित्र स्नान हेतु आये थे। अभी वहाँ के प्रवासी दिवस समारोह में सम्मिलित होने के लिए उत्तर प्रदेश की राज्यपाल मॉरिसस पहुंची। वस्तुतः दो नवंबर के दिन भारत और मॉरीसस दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। इसी दिन भारत के हजारों लोग समुद्री यात्रा के बाद पहली बार यहां पहुंचे थे। जहाँ उनके पहले कदम पड़े उसी को प्रवासी घाट कहा जाता है। यह वैश्विक धरोहर है। आनन्दी बेन इसी जगह आयोजित समारोह में सम्मिलित हुईं। आनन्दी बेन ने यहां पहुंचने वाले भारतीय पूर्वजो को याद किया। उनकी अगली पीढ़ियों ने भारतीय संस्कृति को सदैव प्रतिष्ठित रखा।  
कुछ वर्ष पहले सवाने जनपद में मां दुर्गा की विशाल प्रतिमा को विधि विधान के साथ स्थापित किया गया था। यह तीर्थाटन का महत्वपूर्व स्थान बन गया। सवाने जिले में ही गंगा तलाओ नाम की  झील है। यह गंगा जी प्रतीक रूप में सम्मानित है। प्रत्येक पर्वो पर लोग इसके जल से स्नान करते है। इसे पवित्र झील माना जाता है। इसी स्थान पर एक सुंदर सागर शिव मंदिर की स्थापना भी की गई। करीब पांच वर्ष पहले यहां भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित की गई थी। यह भी तीर्थाटन का स्थल बन गया। स्पष्ट है कि इस देश का माहौल भारतीय है।
भारतीयों के यहां आगमन की यह एकसौ पचासवीं वर्षगांठ थी। माॅरीशस सरकार ने राजधानी पोर्ट लुई स्थित अप्रवासी घाट पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय समारोह का आयोजन किया था। इसमें भारत का प्रतिनिधित्व आनंदीबेन पटेल ने किया। उन्होंने कहा कि यह अप्रवासी घाट पीड़ा और शोषण के उस उपनिवेशवाद के युग की याद दिलाता है। आनन्दी बेन ने यहां आने वाले भारतीयों को अपना पूर्वज बताया। कहा कि यहाँ आकर कठिन जीवन बिताया। अपने खून पसीने से इस धरती को सींचा और पल्लवित किया। ज्वालामुखी की चट्टान से बने इस घाट की सीढ़ियों के जरिए हमारे लाखों पूर्वजों को हिंद महासागर पार कर यहां लाया गया। उन्होंने यातनापूर्ण जीवन बिताया। लेकिन हार नहीं मानी। यूनेस्को ने प्रवासी घाट को विश्व धरोहर घोषित किया है। यह वास्तव में अदम्य मानवीय भावना और शाश्वत आशा के लिए एक समर्पण है। एक सौ दस वर्ष पूर्व दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आते समय गांधी जी ने दो सप्ताह तक माॅरीशस में प्रवास किया था। अंतरमहाद्वीपीय प्रवासन का अध्याय सदैव स्मरण किया जाता रहेगा। भारत के गरीबों को औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था की सेवा करने हेतु अज्ञात भूमि में रखा गया। लेकिन उन महान लोगों ने अपने पूर्वजों की व जन्म भूमि की धरोहर को संभाल कर रखा। इस नई भूमि को मातृभूमि मानकर विकसित किया। यह दृढ़ संकल्प व कड़ी मेहनत से ही संभव हुआ। उनके त्याग व श्रम से अगली पीढ़ियों का जीवन उच्च स्तरीय हो गया। मॉरीशस ने अपनी आजादी के बाद से न केवल अफ्रीका में बल्कि पूरी दुनिया में लोकतंत्र का उल्लेखनीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। हमारे लोगों की इच्छाशक्ति को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के माध्यम से नियमित रूप से नवीनीकृत किया जाता है। आनन्दी बेन ने कहा कि भारत और माॅरीशस दोनों राष्ट्रों को ही अपनी विशाल विविधता से मजबूती प्राप्त होती है। दोनों देश एक दूसरे के विकास में सहभागी है। युवा पीढ़ी की अपने पूर्वजों से प्रेरणा लेनी चाहिए। मॉरीशस और भारत के लोग हमेशा रिश्तेदारी और दोस्ती के अपने मजबूत संबंधों को बनाए रखेंगे। भारत सरकार मॉरीशस सरकार के साथ अपनी साझेदारी को मजबूत रखेगी। दोनों देश मिलकर काम करते रहेंगे। इस अवसर पर माॅरीशस के प्रधानमंत्री प्रवीण कुमार जगन्नाथ, उप प्रधानमंत्री इवान कोलेंडेवेलो, पूर्व प्रधानमंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ, कला और संस्कृति मंत्री पृथ्वीराज सिंह सहित बड़ी संख्या में गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

 


 


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