पानी का महत्त्व

सद्गुरु जग्गी वासुदेव
जीवन के लिए पानी अत्यंत आवश्यक तत्त्व है, लेकिन आज भारत पानी की जिस स्थिति का सामना कर रहा है वह वास्तव में बहुत कठिन है। 1947 में भारत में जितना पानी प्रति व्यक्ति लोगों को मिलता था, आज उसका बस 18 फीसद ही मिल रहा है। भारत में आज ऐसे बहुत से शहर हैं जहां लोग तीन दिनों में एक बार ही नहा पाते हैं। भारत की संस्कृति, हमारी परंपराएं ऐसी हैं कि चाहे कुछ भी हो, चाहे हम भोजन न करें, पर स्नान अवश्य करते हैं। अभी ये परिस्थिति हो रही है कि बहुत से लोगों को रोज नहाने को नहीं मिल रहा है। ये कोई विकास या प्रगति की बात नहीं है, ये कोई खुशहाली नहीं है। ऐसा लगता है कि अब वो दिन आने वाले हैं जब हमें पानी भी एक दिन छोड़ कर पीना पड़ेगा। एक राष्ट्र के रूप में हम पर्याप्त रूप से संगठित नहीं हैं, न ही हमारे पास इतने साधन हैं कि हम एक स्थान से दूसरे स्थान तक लोगों के लिए पीने का पानी ले जा सकें। लाखों लोग बिना पानी के मर जाएंगे। कुछ साल पहले जब मैं हिमालय में घूम रहा था, तो गंगा नदी पर बने टेहरी बांध पर पहुंचा। मुझे मालूम पड़ा कि बांध में पानी का स्तर इतना कम हो चुका था कि बस 21 दिनों का ही पानी बचा था। अगर 21 दिनों में बारिश न होती, तो वहां से आगे गंगा न बहती। क्या आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि अगर गंगा बहनी बंद हो जाए, तो भारत के जनमानस पर इसका क्या असर पड़ेगा? गंगा हमारे लिए केवल एक नदी नहीं है। आज कुछ आध्यात्मिक समूह है जो गंगा को बचाने के, उसे पुनर्जीवित करने के प्रयत्नों में लगे हुए हैं और वे इस बात से बहुत चिंतित हैं कि गंगा को किस तरह बचाया जाए, कैसे उसे संभाला जाए? भारतीय लोगों का गंगा से एक गहरा भावनात्मक जुड़ाव है। शहरों के लोग शायद इस बात को ना समझें, पर एक सामान्य भारतीय के लिए, गंगा जीवन से भी बड़ी है। ये सिर्फ  नदी नहीं है, ये उससे भी ज्यादा है। यह हमारे लिए जीवन का एक प्रतीक है। अगर बरसात आने में दो-तीन सप्ताह की भी देर हो जाती, जो किसी भी वर्ष हो सकता है, तो बांध से नीचे की तरफ  हमें गंगा दिखाई ही न देती। तो अब स्थिति बस ऐसी है या तो हम जागरूकतापूर्वक जनसंख्या पर नियंत्रण करें या फिर प्रकृति ये काम निर्दयतापूर्वक करेगी। हमारे सामने चुनाव के बस यही विकल्प है। ये मेरी नीति नहीं है कि हम अपनी जनसंख्या न बढ़ाएं। बात बस ये है कि अगर हम स्वयं जागरूकतापूर्वक इसे नियंत्रित नहीं करते तो प्रकृति इसे निर्दयी ढंग से करेगी। हम अगर मनुष्य हैं, तो हमें यह काम स्वयं ही सचेतन रूप से करना चाहिए ताकि हमें किसी खराब परिस्थिति का सामना न करना पड़े।


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