करीब 900 साल पुराना है उत्तराखंड का कटारमल मंदिर, बरगद की लकड़ी से बनी है सूर्य प्रतिमा


मकर संक्रांति को सूर्य की उपासना का पर्व माना जाता है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद में कटारमल नामक स्थान पर सूर्य भगवान का मंदिर स्थित है। जो कि 900 साल पुराना है। यह सूर्य मंदिर विशाल और अनूठा होने के साथ ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर की तरह प्राचीन भी है। भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा इस मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है। 


बरगद की लकड़ी से बनी सूर्य प्रतिमा


माना जाता है कि ये मंदिर 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच अलग-अगल समय में बना हुआ है। इस सूर्य मंदिर को बड़ आदित्य सूर्य मंदिर भी कहा जाता है। क्योंकि यहां भगवान भास्कर की मूर्ति पत्थर अथवा धातु की नहीं बल्कि बरगद की लकड़ी से बनी है। मंदिर के गर्भगृह का प्रवेश द्वार भी नक्काशी की हुई लकड़ी का ही था, जो इस समय दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा हुआ है। 


सूर्य की पहली किरण पड़ती है शिवलिंग पर 


समुद्र तल से 2116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस मंदिर का सामने वाला हिस्सा पूर्व की ओर है। इसका निर्माण इस प्रकार करवाया गया है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर में रखे शिवलिंग पर पड़ती है। मंदिर की दीवारें पत्थरों से बनी है। सूर्य मंदिर भवन में श्रद्धालु शिव- पार्वती और लक्ष्मी-नारायण की प्रतिमाएं देख सकते हैं। मंदिर अपने आप में वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है और यहां की दीवारों पर बेहद जटिल नक्काशी की गई है, जो कि लोगों को आकर्षित करती है।


पद्मासन मुद्रा में है सूर्य देव की प्रतिमा 


मन्दिर में प्रमुख मूर्ति बूटधारी आदित्य (सूर्य) की है, जिसकी आराधना शक जाति में विशेष रूप से की जाती है। मंदिर में एक अन्य मूर्ति में सूर्य देव पद्मासन लगाकर बैठे हुए हैं। यह मूर्ति एक मीटर से अधिक लंबी और करीब इतनी ही चौड़ी भूरे रंग के पत्थर से बनाई गई है। यह मूर्ति 12वीं शताब्दी की बताई जाती है। कोणार्क के सूर्य मंदिर के बाहर जो झलक है, वह कटारमल मन्दिर में आंशिक रूप में दिखाई देती है। मंदिर की दीवार पर तीन पंक्तियों वाला शिलालेख है, लेकिन अब वो धीरे-धीरे मिटने लगा है इसलिए उसे पढ़ा नहीं जा सकता है।


45 छोटे-छोटे मंदिरों से घिरा है ये मंदिर 


यहां पर विभिन्न समूहों में बसे छोटे-छोटे 45 मंदिर हैं। मुख्य मंदिर का निर्माण अलग-अलग समय में हुआ माना जाता है। वास्तुकला की विशेषताओं और खंभों पर लिखे शिलालेखों के आधार पर इस मंदिर का निर्माण 11 से 13वीं शताब्दी के बीच का माना जाता है। इन मंदिरों में सूर्य की दो मूर्तियों के अलावा विष्णुजी, शिवजी, गणेशजी की प्रतिमाए हैं। मंदिर के द्वार पर एक पुरुष की धातु मूर्ति भी है। कहते हैं कि यहां पर समस्त हिमालय के देवतागण एकत्र होकर पूजा- अर्चना करते हैं।


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