शीत ऋतु और अलाव
इस दिन शीत ऋतु अपनी चरम सीमा पर होती है। तापमान शून्य से पांच डिग्री सेल्सियस तक होता है तथा घने कोहरे के बीच सब कुछ ठहरा-सा प्रतीत होता है। लेकिन इस शीतग्रस्त सतह के नीचे जोश की लहर महसूस की जा सकती है। विशेषकर हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश में लोग लोहड़ी की तैयारी बहुत ही खास तरीके से करते हैं। आग के बड़े-बड़े अलाव कठिन परिश्रम के बाद बनते हैं। इन अलावों में जीवन की गर्मजोशी छिपी रहती है। विश्राम व हर्ष की भावना को लोग रोक नहीं पाते हैं। लोहड़ी पौष मास की आखिरी रात को मनाई जाती है। कहते हैं कि हमारे बुजुर्गों ने ठंड से बचने के लिए मंत्र भी पढ़ा था। इस मंत्र में सूर्यदेव से प्रार्थना की गई थी कि वह इस महीने में अपनी किरणों से पृथ्वी को इतना गर्म कर दें कि लोगों को पौष की ठंड से कोई भी नुकसान न पहुंच सके। वे लोग इस मंत्र को पौष माह की आखिरी रात को आग के सामने बैठकर बोलते थे कि सूरज ने उन्हें ठंड से बचा लिया।
पंजाब में धूम
विशेषतः पंजाब के लोगों के लिए लोहड़ी की महत्ता एक पर्व से भी अधिक है। पंजाबी लोग हंसी-मजाक पसंद, तगड़े, ऊर्जावान, जोशीले व स्वाभाविक रूप से हंसमुख होते हैं। उत्सव प्रेम व हल्की छेड़-छाड़ तथा स्वच्छंदता ही लोहड़ी पर्व का प्रतीक है। आधुनिक समय में लोहड़ी का दिन लोगों को अपनी व्यस्तता से बाहर खींच लाता है। लोग एक-दूसरे से मिलकर अपना सुख-दुःख बांटते हैं। भारत के अन्य भागों में लोहड़ी के दिन को पोंगल व मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। ये सभी पर्व एक हीसंदेश देते हैं, हम सब एक हैं।आपसी भाईचारे की भावना तथा प्रभु को धरती पर सुख, शांति और धन-धान्य की प्रचुरता के लिए धन्यवाद देना, यही भावनाएं इस दिन हर व्यक्ति के मन में होती हैं।