माहुंनाग मंदिर


छोटी काशी मंडी मंदिरों की नगरी के नाम से भी जानी जाती है। यहां देवी-देवताओं के मंदिर गांव-गांव में बने हैं। यहां के लोगों की देवताओं के प्रति गहरी आस्था देखने को मिलती है। यहां देवताओं को विशेष शक्ति के कारण जाना जाता है और पूजा की जाती है। मंडी में देव कमरूनाग को बड़ा देव माना जाता है। इसे वर्षा का देवता भी माना जाता है। वहीं मंडी में देव माहुंनाग का भी विशेष स्थान है। देव माहुंनाग को विष के देवता के रूप में पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि किसी व्यक्ति को सांप काट ले,तब माहुनाग देवता से मनौती करने पर सांप का विष उसका नुकसान नहीं करता है। वैसे तो देव माहुंनाग के शहर और गांव में कई मंदिर बने हैं, लेकिन मंडी में माहुंनाग का स्थान (तरौर) में जाना जाता है। माहुंनाग का मूल स्थान शैदल गांव (करसोग) में माना जाता है,जहां किसान को हल चलाते हुए खेत में नाग देव की मूर्ति मिली थी। फिर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करके बखारी नामक स्थान पर इसका मंदिर बनाया गया। पहले इन्हें नाग रूप में पूजा जाता था।नाग देवता माहुंनाग को महाभारत काल का दानवीर कर्ण माना जाता है। नाग से माहुंनाग बनने के बारे में बताया जाता है कि करसोग का शैदल गांव सुंदरनगर  रियासत में आता है। 1664 में वहां का राजा श्याम सेन था। मुगल सम्राट औरंगजेब ने किसी बात पर नाराज होकर राजा श्याम सेन को कैद करके दिल्ली में रखा था। उस समय नाग देवता माहुं का रूप धारण करके जेल में राजा से मिले और उस समय तक राजा के साथ रहे, जब तक मुगल सम्राट ने राजा को रिहा नहीं किया। माहुं रूप धारण करने के बाद नाग देवता माहुं कहलाने लगे। वहीं माहुंनाग गांव तरौर आए। यहां देवता का प्रथम स्थान माना जाता है। तरौर जंगल में देवता का मंदिर बना है, जहां पैदल जाना पड़ता है। सड़क के साथ देवता का भंडार है, जहां देव रथ के साथ देवता का सारा समान बाजे (ढोल,नगाड़े भी रहते हैं) वहीं देवता के पुजारी का निवास भी है। पहले देवता का एक भंडार था, वहीं अब दो भंडार बने हैं और अलग पुजारी भी है तथा देवता का अलग सामान भी है। दूर-दूर से लोग आते हैं अपनी मान्यता रूप देव भंडार में देव दर्शन करते हैं। दोनों स्थानों पर गूर भी है, जो लोगों को देववाणी से अवगत कराते हैं। विशेष कार्यक्रम मंदिर में पूजा के बाद भंडार में ही होता है। माहुंनाग देवता को सांपों के विष से बचाने के साथ कुत्ते के काटने के साथ संतान दाता के रूप में भी जाना जाता है।


सांप तथा कुत्ते के काटने पर पहले लोग दो मुट्ठी अनाज,धूप,सवा रुपया लेकर देवता को विष से बचाने के लिए मनौती मांगते थे, जिसे यहां बांधा रखना माना जाता है। देवता के पास संतान मांगने वाली माताएं देव भंडार में देव सेवा के भंडार में आती हैं और गूर द्वारा बताए गए नियम अनुसार पांच, सात, नौ या ग्यारह दिन रहती हैं। जिसे यहां पासे पड़ना कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि देव वाणी से मिला यह आदेश उन्हें खाली नहीं लौटाता है। कई बार जिन लोगों की संतान पैदा होने के बाद जो नहीं आते यदि वह दंपति अपनी संतान को देव शरण में डाल दे , जिसे यहां भाटके पाए जाना कहा जाता है, तब देवता उस संतान की रक्षा करते हैं। उस बच्चे को देवता के उपनाग नागणी से भी पुकारते हैं। वैसे तो दूर-दूर से लोगों का आना-जाना लगा रहता है,लेकिन नागपंचमी को यहां विशेष रूप से मनाया जाता है। नाग पंचमी को यहां माहुंनाग देवता के जन्म दिन के रूप में मनाया जाता है। माहुंनाग का मंडी में विशेष स्थान है। शिवरात्रि मेले में देव दर्शन को लोगों की भीड़ लगी रहती है।


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