विवाद से परे है ईश्वर का अस्तित्व
वृद्धावस्था में आम तौर से शरीर बहुत शिथिल हो जाता है और इंद्रियां जवाब दे जाती हैं। फिर भी कई बार यह आश्चर्य देखा गया है कि शताधिक आयु वाले व्यक्ति भी नवयुवकों की तरह प्रजनन क्रिया सफलतापूर्वक संपन्न करते रहते हैं। यह गोनेड्स ग्रंथियों के सशक्त बने रहने और समुचित यौन-हारमोन्स स्रावित होते रहने का ही परिणाम है। मनःशास्त्री एडलर ने काम-प्रवृत्ति की शोध करते हुए पाया कि बाहर से अतीव सुंदर, आकर्षक और कमनीय दिखाई देने वाली अनेक महिलाएं काम-शक्ति से सर्वथा रहित हैं। उनमें न तो रमणी प्रवृत्ति थी, न नारी सुलभ उमंग। खोज करने पर ज्ञात हुआ कि यौन-हारमोन्स के स्रोत ही इन विशेषताओं के आधार हैं। एडलर ने अपनी खोज के दौरान देखा कि कितने ही युवकों की शारीरिक स्थिति सामान्य थी, ऊपर से उनमें मर्दानगी भरी ही दिखाई देती थी, पर थे वे वस्तुतः नपुंसक। न तो उनके मन में काम उमंग थी, न जननेंद्रिय में उत्तेजना। कारण तलाश करने पर उनमें सेक्स-हारमोनों का अभाव पाया गया। इसके विपरीत उन्हें ऐसे नर-नारी भी मिले जो अल्पवयस्क अथवा वयोवृद्ध होते हुए भी काम पीडि़त रहते थे। अंतःस्रावी ग्रंथियों और उनसे उत्पन्न हारमोनों के आश्चर्यजनक प्रभाव के ढेरों प्रमाण अध्ययनकर्ताओं को मिले हैं। बीथोवेन जैसे बहरे का प्रखर संगीतज्ञ बनना, डीसास्थनीज जैसे हकलाने वाले का धुरंधर वक्ता हो सकना, डेनियलबोर्न जैसे मंद दृष्टि का सुंदर दृश्यों को अंकन करने वाला कुशल चित्रकार बन पाना इन्हीं हारमोनों के स्राव की मात्रा पर निर्भर रहा है। ‘एस्ट्रोलॉजिकल कोरिलेशन्स विथ द डक्टलैस ग्लैंड्स’ नामक ग्रंथ में अंतःस्रावी ग्रंथियों की चर्चा आंतरिक ग्रहों के रूप में की गई है। जिस प्रकार सौरमंडल के विविध ग्रह परस्पर संतुलन स्थिति बनाए हैं, वैसे ही ये अंतःस्रावी ग्रंथियां शारीरिक, मानसिक संतुलन साधे रहती हैं। इस तुलना-क्रम में सूर्य की पीनियलबाडी से, चंद्र की पिट्यूटरी से, मंगल की पैराथाइराइड से, बुध की थाइराइड से, वृहस्पति की एड्रीनल से तथा शुक्र की थाइमस से तुलना की गई है। ‘ऑकल्ट एनाटॉमी’ के लेखक ने इन ग्रंथियों का उल्लेख ‘ईथर सेंटर्स’ के रूप में किया है तथा उनके उद्दीपन की अंतर्ग्रही चेतना के साथ जोड़ा है। प्रतीत होता है कि अविज्ञात चेतना केंद्रों से इन ग्रंथियों के माध्यम से मनुष्य को कुछ असाधारण अनुदान मिलता रहता है।